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+ जो ण मरदि णय दुहिदो सोविय कम्मोदयेण खलु जीवो। म
तङ्मा ण मरिदोदे दुहाविदो चेदि गहु मिच्छा ॥२२॥
यो म्रियते यश्व दुःखितो जायते कर्मोदयेन स सर्वः। सम्मात मारितस्ते दुःखितो देति न खलु मिथ्या ॥२१॥ यो न म्रियते न च दुखितो भवति सोपि च कर्मोदयेन खलु जीवः।
तस्मान्न मारितो नो दुःखितो वेति न खलु मिथ्या ॥२२॥ आत्मख्याति:---यो हि प्रियते जीवति वा दुःखितो भवति सुखितो भवति च स खलु कर्मोदयेनैव तदभावे वस्य जा तथा भपितमशक्यत्वात् ततः, मयायं मास्तिः, अयं जीवितः अयं दुःखितः कृतः, अयं मुखितः कृतः, इति पश्यन्
मिथ्यादृष्टिः। म अर्थ-जो मरे है बहुरि दुःखी होय है सो सर्व कर्मके उद्य करि होय है । तातें तैरै “मैं ... भारथा, मैं दुःखी किया ऐसा अभिप्राय है, सो मिथ्या नाहीं है कहा ? मिथ्या ही है। बहुरि + जो मरे नाहीं है बहुरि दुःखी नाही होय है सो भी कर्मके उदयही करि होय है । तातें तेरै
यह अभिप्राय है "जो में मारथा नाहीं अर दुःखी न किया" सो यह भी अभिप्राय कहा मिथ्या
नाहीं है ? मिथ्या ही है। + टीका-निश्चयकरि मरे है तथा जीवे है अथवा दुःखी होय है तथा सुखी होय है सो___ अपने कर्म के उदयकरि होय है। तिस कर्म के उदयका अभाव होते तिस जीवके तैसें मरण + जीवन सुख दुःख होनेका असमर्थपणा है । तातें में यह मारथा, यह मैं जीवाया, यह में दुःखी + किया, यह मैं मुखी किया ऐसें मानता संता जीव मिथ्यादृष्टि है।
___ भावार्थ-कोऊ काडूका मारचा मरे नाही, जीवाया जीवे नाही, सुखी एसी किन सुती म
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