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विपाकमयीनां हननादिक्रियाणां च विशेषाज्ञानेन विविक्तात्माऽज्ञानादस्ति तावदशानं विवितात्माऽदर्शनादस्ति व समयं मिथ्यादर्शनं विविक्तात्मानाचरणादस्ति चाचारित्रं । यत्पुनरेष धर्मो ज्ञायत इत्याद्यध्यवसानं तदप्यज्ञानमयत्वेनात्मनः 5 सद्हेतुकज्ञानैकरूपस्य ज्ञयमयानां धर्मादिरूपाणां च विशेषाज्ञानेन विविकात्माऽज्ञानादस्ति तावदज्ञानं विविक्तात्मा०८ दर्शनादस्ति च मिथ्यादर्शनं विविकारमानाचरणादस्ति चारित्रं । तती बंधानामखान्येवैतानि समस्तान्यध्यवसानानि । 5 येषामेवेतानि न विद्यते त एवं मुनिकुञ्जराः । केचन सदहेतुकज्ञस्यैकक्रियं सदहेतुकशायकैकभावं सदहेतुकज्ञानैकरूपं च 5 विवितात्मानं जानंतः सम्पपश्यतोऽनुचरंतश्च स्वच्छस्वच्छदोद्यदमंदांतज्यों तिषो ऽस्य॑तमज्ञानादिरूपत्वामाचाद शुभे नाशुभेन वा कर्मणा खलु न लिप्येरन् ।
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अर्थ--ए पूर्वोक्त अध्यवसान जिनिके नाहीं हैं तथा या प्रकार के अन्य भी अध्यवसानः जिनके 15 5 नाहीं हैं, ते मुनिराज अशुभ तथा शुभकर्मकरि नाहीं लिपे हैं ।
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टीका-ए पूर्वोक्त अध्यवसान हैं ते तीन प्रकार हैं । अज्ञान अदर्शन अचारित्र । ऐसे ते समस्त ही शुभ अशुभ कर्मबंधके निमित्त हैं । जातें ए आप स्वयं अज्ञानादिरूप हैं। कैसे हैं :सो 5 5 कहिये हैं। जो यह मैं परजीवकू हणं हूं इत्यादिक अध्यवसाय है सो अज्ञानादिरूप होय है। जातें आमतौ ज्ञायक है, तिलपणाकरि ज्ञप्तिक्रियामात्र ही है, तातैं सदपद्रव्यदृष्टिरि अहेतुक 5 कातें उपज्या नाहीं ऐसा नित्यरूप ज्ञप्ति कहिये जाननेमात्र ही है एक क्रिया जाकै ऐसा है । 卐
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बहुरि ना घातना आदि क्रिया हैं ते राग द्वेषका उदयमय हैं। ऐसें आत्मा के अर घातने आदि 5 क्रियाके विशेष न जाननेकरि भिन्न आत्माकूं जान्या नाही, तातें मैं परजीवकूं घातू हू ऐसा अध्यवसान अज्ञान है | बहुरि ऐसे ही भिन्न न्यारा आत्माका न देखना, श्रद्धान: न होना तातें: अध्यवसान मिथ्यादर्शन हैं । बहुरि ऐसे ही भिन्न न्यारा आत्माका अनावरण अध्यवसान हो 卐 अचारित्र है । बहुरि यह धर्मद्रव्य है सो मोकरि जानिये है ऐसा अध्यवसाय है, सो भी अज्ञानादिरूप ही है । जातें आत्मा तौ ज्ञानमय है, तिसपणा करि ज्ञानमात्र ही है । जातें सद्रपद्रव्यफ 5 दृष्टिकरि अहेतुक कहिये जाका कारण कोऊ नाहीं ऐसा ज्ञानमात्र ही है एकरूप जाका ऐसा है। 5
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