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बेला तावाशतिभा पुरूः सा तु सगाव यम्भूनां सामान्यविशेषात्मकत्वात् वैरूप्यं नातिकामति । ये तु तस्या रूपे " 卐ते दर्शनझाने, ततः सा नातिक्रामति । यद्यतिक्रामति ! सामान्यविशेषातिक्रांतत्वाच्चेतनैव न भवति । तदभावे द्वौ ॥ .. दोषी--स्वगुणोच्छेदाच्छतनस्याचेतनतापत्तिः, ब्यापकाभावे च्याप्यस्य चेतनस्याभावो वा। ततस्तद्दोपभयादर्शनज्ञानाजस्मिकैव चेतनाभ्युपगंतव्या ! + अर्थ-प्रज्ञाकरि ऐसे ग्रहण करना, जो द्रष्टा कहिये देखनेवाला, सो तो निश्चयते में हौं, "अवशेष जे भाव हैं, ते मेरे पर हैं, ऐसें जानना। बहुरि प्रज्ञाहीकरि ग्रहण करना, जो ज्ञाता + 卐 कहिये जाननेवाला हौं, सो तौ निश्चयतें में हौं, अवशेष जे भाव हैं, ते मेरे पर हैं, ऐसें जानना । .. टीका-जातें चेतनाकै दर्शनज्ञानके भेदका उल्लंघन नाहीं है, तातें चेतकपणाको ज्यौं दर्शकटपणा अर ज्ञातापणा आत्माका निजलक्षण ही है, तातें ऐसें अनुभवन करना जो मैं देखनेवाला 1- आत्माकू ग्रहण करूं हौं, जो निश्चयतें ग्रहण करूं हौं, सो देख ही हौं, देखता संता ही देख
"हो, देखता करि ही देख हौं, देखताके अर्थि ही देख हौं, देखताते ही देख हौं, देखतेविर्षे ही 5 पर देख हौं, देखते ही देखू हौं । अथवा न देखू हौं, न देखतां संता देख हौं, न देखतेकरि देखू
"हो, न देखतेके अर्थि देखू हौं, न देखते देखू हौं, न देखतेवि देखू हूं । न देखताकू देखू हूं। प्रतौ कहा हौं ? सर्वविशुद्ध एक दर्शनमात्र भात्र में हों। ऐसें तौ दर्शनपरि कर्ता कर्म करण
सम्प्रदान अपादान अधिकरण लगाय, फेरि तिनिका निषेधकरि अर एक दर्शनमात्र भावस्वरूप 'आत्माकू अनुभवनरूप करना । बहुरि तैसे ही ज्ञानपरि लगावना, जो जाननेवाला ज्ञाता आत्माकू 卐 ..मैं ग्रहण करूं हौं । जो ग्रहण करूं हो, सो निश्चयतै जानू ही हौं, जानता' संता ही जानू हौं,
जानताकरि ही जानू हौं, जानताके अर्थि जानू हौं, जानताते ही जानू हौं, जानताविर्षे ही 15 जानू हों, जानताकू ही जानू हौं, अथवा न जानू हों, न जानता संता जानू हों, न जानता- +
"करि जानूं हों, न जानताके अर्थि ही जान हौं, न जानतातें जानें हौं, न जानताकेविर्षे जान हो, मन जानताकू जानूं हौं । तो कहा हौं ? सर्वविशुद्ध एक जाननक्रियामात्र भाव में हौं। ऐसे
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