________________
卐
卐 पडिकमणं । इत्यादिक निश्चयप्रतिपादिक स्वरूप आगे कहसी । तहां इस गाथाका भी अर्थ
समय 5 लिखियेगा ।
卐
२५८
भावार्थ-व्यवहारनयक आलंधी कही जो लगे दोषका प्रतिक्रमणादिकरि ही आत्मा शुद्ध हाय है, तो पहले ही शुद्धात्माका आलंबनका खेदकर कहा है ? शुद्ध भये पीछे ताका आलंबन होय, पहले ही तौ आलंबनका खेद निष्फल है । ताकूं आचार्य समझावे हैं - जो द्रव्यप्रति -
卐
क्रमणादिक हैं ते दोष मेटनेवाले हैं, परंतु शुद्ध आत्माका स्वरूप प्रतिक्रमणादिरहित है । ताका 55 5 आलंयविना तौ द्रव्यप्रतिकरणादिक हैं ते दोष स्वरूप ही हैं। दोपकू मेटनेकूं समर्थ नाहीं । जातें निश्चयकी सापेक्षहित हो महालय बोक्षमार्ग में है अर केवल व्यवहारहीका पक्ष तौ मोक्षमार्ग में नाहीं, बंधहीका मार्ग हैं। तातें ऐसें कया है, जो अज्ञानीके जे अप्रतिक्रमणादिक हैं, ते तौ विषकुंभ है ही, तिनिकी तौ कहा कथा ? परंतु जे व्यवहारचारित्रमें प्रतिकमणादिक 5 कहे हैं ते भी किरि विषकुभ ही हैं। जाते आत्मा तौ प्रतिक्रमणादिककरि रहित शुद्ध अप्रतिक्रमणादिस्वरूप है ऐसें जानना । अब इस कथनका कलशरूप काव्य कहे हैं । अतो हताः प्रमादिनो गताः सुखासीनतां प्रलीनं चापलमुन्मीलितमालंबनं - 1 आत्मन्येवालातिं च चित्तमासम्पूर्ण विज्ञानघनोपलब्धेः ॥ ६ ॥
卐
卐
अर्थ - इस कथन सुखकर बैठनेषणाकू प्राप्त भये ऐसे प्रमादीजीवनिकू तौ ताडे हैं। जे 卐
5 निश्चयनयका आश्रय ले प्रमादी होय प्रवर्तें, तिनिकूं ताडिकरि उद्यम लगावे हैं। बहुरि चपल
फफफफफफफफफ 5
5
पणाका प्रलय किया है । जे स्वच्छंद वर्ते तिनिका स्वच्छंदपणा मेटया है । बहुरि आलंबनकू 5 उपाडया है । जे व्यवहारकी पक्षकरि परद्रव्यका तथा द्रव्यप्रतिक्रमणादिका आलंबन ले
卐
फफफफफफफफफफफफफ
फ्र
संतुष्ट होय है, तिनका आलंबन छुड़ाया है। बहुरि चित्तकुं आत्माहीविर्षे आलानित किया है,
है । व्यवहार के आलंबनमें अनेक प्रवृत्तीमें चित्त भ्रमे था, सो शुद्ध आत्माहीविषै लगाया
। जहां तांई संपूर्ण विज्ञानघन आत्माकी प्राप्ति न होय, तहां तांई चैतन्यमात्र आत्माविर्षे चित
卐