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म अर्थ-जाते कषायका भर कहिये भार, ताका गौरव कहिये भारयापणा, तातें अलसता॥ 15 कहिये आलसपणा, ताकू प्रमाद कहिये है । सो ऐसे प्रमादकरि युक्त अलसभाव होय, सो शुद्ध...
" भाव कैसे होय ? याते आत्मिकरसकरि भरचा स्वभावविर्षे निश्चल होता संता मुनि है सो । •॥ परमशुद्धताकू प्राप्त होय है । बहुरि शीघ्र ही थोरे ही कालमें कर्मबंधतें छूटे है।
___ भावार्थ-प्रमाद तौ कषायका गौरवतें होय है सो प्रमादीकै शुद्धभाव होय नाहीं । जो मुनि - + उद्यमकरि स्वभावमें प्रवर्ते है सो शुद्ध होयकरि मोक्षकू प्राप्त होय है। अब मुक्त होनेका के - अनुक्रमके अर्थरूप काव्य कहे हैं अर मोक्षका अधिकार पूर्ण करे हैं।
म शालविक्रीडितछन्दः म त्यक्त्वाशुद्धिविधायि तत्किल परद्रव्यं समय स्वयं स्वे द्रन्ये रसिमेति यः स नियतं सर्वापरावच्युतः। "
बन्धध्वंसमुपेत्य नित्यमुदितः स्वज्योतिरच्छोच्छलञ्चैतन्यामृतपूरपूर्णमहिमा शुद्धो भवन्मुच्यते ॥१२॥
अर्थ-जो पुरुष निश्चयकरि अशुद्धताका करनेवाला जो परद्रव्य, ताकू सर्वकू छोडिकरि के 1- अर आप अपने निजद्रव्यविर्षे रतीकू प्राप्त होय है-लीन होय है, सो पुरुष नियमते सर्व अपराधते
" रहित भया संता, बंधका नाशकू प्रात होयकरि नित्य उदयरूप भया संता अपना स्वरूपका प्रकाश 4 रूप ज्योतिकरि निर्मल उछलता जो चैतन्यरूप अमृतका प्रवाह, ताकरि पूर्ण है महिमा जाकी ,
ऐसा शुद्ध होता संता कर्मनित छूटे है। 卐 भावार्थ-पहले समस्त परद्रव्यका त्याग कर अपना निजद्रव्य आत्मस्वरूपविर्षे लीन होय ॥
है, सो सर्व रागादिक अपराधते रहित होय आगामी बंधका नाश करे है अर नित्य उदयरूप ..
केवलज्ञानकू पाय शुद्ध होय सर्व कर्मका नाशकरि मोक्ष प्राप्त होय है, यह मोक्ष होनेका अनु.॥ 卐 क्रम है। ऐसे मोक्षका अधिकार पूर्ण भया, ताके अंत मंगलरूप ज्ञानकी महिमाका कलशरूप : 1. काव्य कहे हैं।
जम卐
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