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भोक्ताका भेद है । चिन्मात्र द्रव्य अपेक्षा भेद नाही है। ऐसे भेद अभेद होऊ तथा चिन्मात्र 卐 अनुभवनमें काहे भेद अभेद कहना ? कर्ताभोक्ता ही न कहना । वस्तुमात्र अनुभवन करना। 卐 1- जैसा मणिनिकी मालामै सूत्र मोतीनिका विवक्षात भेद है। मालामात्रग्रहण करनेमें भेदाभेद। विकल्प नाही, तैसा आत्माविर्षे चैतन्यकै द्रव्यपर्याय अपेक्षा भेदाभेद है, तोऊ आत्मवस्तुमात्र - अनुभव करतै विकल्प नाही। सो आचार्य कहे हैं-ऐसा निर्विकल्प आत्माका अनुभव हमारे
प्रकाशरूप है, ऐसा जैनीनिका वचन है। आगे इस कथन दृष्टांतकरि स्पष्ट करे हैं, ताकी । 卐 सूचनिकाकू नयविभागका काव्य कहे हैं।
रथोद्धताछन्दः व्यावहारिकरशैय केवलं कर्ट कर्म च विभिनमिष्यते ।
निश्चयेन यदि वस्तु चिन्त्यते क कर्म च सदैकमिश्यते ॥१८॥ ___ अर्थ-व्यवहारकी दृष्टिमैं तो केवल कर्ता अर कर्म भिन्न दोखे है, अर जब निश्चयकरि देखिये ॥ वस्तूकू विचारिये तव कर्ता अर कर्म सदाकाल एक ही देखिये है।
. भावार्थ-व्यवहारनय तो पर्यायाश्रित है । सो यामें तौ भेद ही दीखे । बहुरि शुद्धनिश्चयनय ।
है सो द्रव्याश्रित है। तामैं अभेद ही दीखे, तातै व्यवहारमैं तौ कर्ताकर्मका भद है। निश्चयमै ॥ - अभेद हे । आगै इस कथनकू दृष्टांतकरि गाथामें कहे हैं।
जह सिप्पिओ दु कम्मं कुम्वदि णय सोदु तम्मओ होदि।। तह जीवोवि य कम्मं कुब्वदि णय तम्मओ होदि ॥४१॥ जह सिप्पिओ दु करणेहिं कुम्वदि गय सोदु तम्मओ होदि। . तह जीवो करणेहिं कुम्वदि णय तम्मओ होदि ॥४२॥
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