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भावार्थ — भावकर्मका कर्ता जीव ही सिद्ध किया, सो इहां ऐसा जानना जो परमार्थत फ्र अन्य द्रव्य अन्यद्रव्यका भावका कर्ता नाहीं है । तातें जे चेतनके भाव हैं, तिनिका चेतन ही कर्ता होय । सो यह जीवकै अज्ञानतें मिथ्याल आदि भावरूप परिणाम हैं ते चेतन हैं, जड 卐
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5 नाहीं हैं। शुद्धनयकरि तिनिकू चिदाभास भी कहे हैं। तातें चेतनकर्मका कर्ता वेतन ही होय, 5 यह परमार्थ है। तहां अभेददृष्टिमें तौ शुद्धचेतनमात्र जीव है अर कर्मके निमित्ततें परिणमे तब फ तिनि परिणामनिकरि युक्त होय । तव परिणामपरिणामीका भेददृष्टि मैं अपने अज्ञानभाव परिणाम क हैं, तिनका कर्ता जीव ही है । अर अभेददृष्टिमें कर्ता कर्मभाव ही नाहीं है, शुद्धचेतनामात्र जीवस्तु है । या प्रकार यथार्थ समझना । जो चेतनकर्मका कर्त्ता चेतन ही है। अब इस अर्थका 5 कलशरूप काव्य कहे हैं ।
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भावार्थ --चेतनकर्म वेतनहीकै होय, पुद्गल जड हैं, ताके चेतनकर्म कैसे होय ? आगे जे 5 केई भावकर्मका भी कर्ता कर्महीकूं माने हैं, तिनिकूं समझाने कहे हैं। ताकी सूचनाका काव्य है I
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शार्दूलविक्रीडित छन्दः
कार्यत्वादकृतं न कर्म न च तज्जीवप्रकृत्यो गोरज्ञायाः प्रकृतेः स्वकार्यकभुग्भावानुषङ्गा कृतिः । नैकस्याः प्रकृतेरचिन्वलसनाज्जीवोऽस्य कर्त्ता ततो जीवस्यैव च कर्म तच्चिदनुमं ज्ञाता न तत्पुद्गलः ॥ ११ ॥ अर्थ-कर्म है सो कार्य है, तातें बिना किया होय नाहीं । बहुरि सो कर्म जीवका अर प्रकृतिका दोऊका किया नाहीं । जातें प्रकृति तौ जड है, ताके अपने अपने कार्यका फलका भोगने का प्रसंग आये है । बहुरि एक प्रकृतिकी ही कृति कहिये कार्य नाहीं है । जातें प्रकृति अचेतन है अर भावकर्म चेतन है । तातें इस भावकर्मका कर्त्ता जीव ही है। यह जीवहीका कर्म है । जातें चेतनके अनुग कहिये चेतनतें अन्वयरूप हैं-चेतनके परिणाम हैं । अर पुद्गल है सो ज्ञाता नाही है । तातें पुद्गल के नाही है ।
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स्याद्वादकर वस्तुकी मर्यादा 5
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