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कर्मका उदय विना निद्राको अप्राप्ति है, बहुरि कर्म ही आत्माकू जगावे हैं, जातें निद्रानामा ,
कर्मका क्षयोपशम विना जागनेकी अप्राप्ति है । बहुरि कर्म ही आत्माकू सुखी करे है जाते साता''वेदनीयनामा कर्मका उदय विना सुखकी अप्राप्ति हैं । बहुरि कर्म ही आत्माकू दुःखी करे है, जाने) .२ । असातावेदनीयनामा कर्मका उदय विना दुःखकी अप्राप्ति है । बहुरि कर्म ही आत्माकू मिथ्यादृष्टि ।
करे है जातें मिथ्यावकर्मका उदय विना मिथ्यात्वको अप्राप्ति है। बहुरि कर्म ही आत्माकू असंयमी के न करे है, जातें चारित्रमोहनामा कर्मका उदय विना असंयमकी अग्राप्ति है। बहुरि कर्म ही आत्माकूर "उर्वलोकमें अधोलोकमें तिर्यंचलोकमें भ्रमावे है, जात आनुपूर्वीनामा कर्मका उदय विना भ्रमणकी। 卐 अप्राप्ति है। बहुरि और भी ज्यों क्यों जेता शुभ अशुभ है, सो तेता सर्व ही कर्म ही करे है,
जातें प्रशस्त अप्रशस्त रागनामा कर्मका उदय विना तिनि शुभाशुभको अप्राप्ति है। जाते या प्रकार
समस्तहीकू कर्म स्वतंत्र होय करे है, कर्म ही दे है, कर्म ही हरि ले है, तातें हम ऐसा निश्चय करे॥ पर हैं, जो सर्व ही जीव हैं ते नित्य ही सदा ही एकांतकरि अकर्ता ही हैं बहुरि विशेष कहिये-जो श्रुति ।। " कहिये वाणी शास्त्र भी इल हीअर्थकू कहे है, जो पुरुषवेदनामा कर्म है सोतौस्त्री• अभिलाषे हे..
चाहे है, वहुरि स्त्रीवेदनामा कर्म है सो पुरुषकू अभिलाषे है-चाहे है, ऐसे वाक्यकरि कर्मके ही
कर्मका अभिलाषका कतीपणाका समर्थनकरि जीवकै अब्रह्मचारीपणाका कापणाका प्रतिषेधते" फ़ भी कर्मही कर्तापणा आया, जीव अकर्ता ही सिद्ध भया । बहुरि से ही जो पर• हणें है, .. बहरि जो परकरि हणिये है, सो परघातनामा कम है, ऐसे वचनकरि कर्महीके कर्मका घातका भकर्तापणाका समर्थनकरि जीवकै घातका कर्तापणाका प्रतिषेधतें सर्वथा जीवकै अकर्तापणा जनाया॥ - है। या प्रकर ऐसा सांख्यका मत केई "श्रमणाभास कहिये यति नाहीं अर यतीले कहावे ते"...
अपनी बुद्धिके अपराधकरि सूत्रके अर्थ ऐसे विपरीत जानते संते सूत्रका अर्थ प्ररूपण करे हैं।" 5 ऐसा पूर्वपक्ष है।
अब आचार्य कहे हैं-जे ऐसे पक्ष करे हैं, तिनिके एकांतकरि प्रकृतिका कर्तापणा माननेकरि।
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