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जो किछ कर है, सो कर्म हो कर है। तात सर्व जीव है ते अकारक प्राप्त भये-जीव का नाहीं। बहुरि यह आचार्यनिकी परंपराकरि चली आई श्रुति है, सो भी कहे हैं जो पुरुष वेदकर्म हे, सो तौस्त्रीका अभिलाषी है बहुरि स्त्रीवेदनामा कर्म है, सो पुरुषकू अभिलाषे है-चाहे है । तातें कोई ॥ - भी जीव अब्रह्मचारी नाहीं । हमारा उपदेशविर्षे ऐसा , जातें कर्म है सो हो कर्मकू अभिलाषे ..... "है चाहे है ऐसे कया है । जाते परक हणे है परकरि हणिये है सो भी प्रकृति ही है । तिस ही के अर्थकार प्रगटकरि कहिये है जो यह परघातनामा प्रकृति है। तातें हमारा उपदेशविर्षे कोई भी - - जीव उपधात करनेवाला नाहीं है। जाते कर्म है सो ही कर्मकू घाते है ऐसें कहा है। ऐसे जे ।
केई श्रमण जति ऐसा सांख्यमतका उपदेशकू प्ररूपे हैं, तिनिक प्रकृति ही करे है, आत्मा हैं तेज - सर्व ही अकारक है ऐसा आया अथवा आचार्य कहे हैं-जो आत्माका कर्तापणाका पक्ष साधनेकू "तू ऐसें मानेगा जो मेरा आत्मा है सो आपके आप... करे है ऐसे कापणाका पक्ष भी मानू ॥
हो। तो तेरा ऐसें जाननेका यह मिथ्या स्वभाव है। जातें आत्मा नित्य असंख्यातरदेशी सिद्धांत. विय कह्या है, तिसते हीन अधिक करने• समर्थ नाहीं हुजिये है। जीवका जीवरूप विस्तार अपेक्षा निश्चयकरि लोकमात्र जानू । सो ऐसा जीवद्रव्य तिस परिणामते हीन तथा अधिक कैसे करे .. है ? बहुरि ऐसें मानिये जो ज्ञायकभाव है सो ज्ञानस्वभावकरि तिष्ठे है, तो ताही हेतूतें ऐसा।
आया--जो आत्मा आपके आपकू स्वयमेव नाहीं करे है । तातें कर्तापणा साधनेकू विवक्षा पल- टिकरि पक्ष का सो बन्या नाही, तातें कर्मका कर्ता कहीकू माने तो स्याद्वादतें विरोध ही "आवेगा, तातें कथंचित् अज्ञान अवस्थामैं अपने अज्ञानभावरूप कर्मका कर्ता मानै स्याद्वादतें विरोध
नाहीं है। " टीका-तहां पूर्वपक्ष ऐसा है-जो कर्म ही आत्माकू अज्ञानी करे है, जाते ज्ञानावरण कर्मकाम 7 उदयः विना तिस अज्ञानकी अप्राप्ति है, बहुरि कर्म ही आत्माकू ज्ञानी करे है, जातें ज्ञानावरण - कर्मका क्षयोपशम विना ज्ञानकी अप्राप्ति है । बहुरि कर्म ही आत्माकू सुवाणे है, जाते निद्रानामा
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