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प्रदीपं प्रयोजयति । नच प्रदीपोप्ययः कांतोपलकृष्टायः सूर्चायत स्वस्थानात्मच्युत्य तं प्रकाशयितुमायाति । किं तु वस्तुस्त्र9 भावस्य परेणोत्पादयितुमशक्यत्वात् परमुत्पादयितुमशक्तत्वाच्च यथा सदसन्निधाने तथा तत्संनिधानेऽपि स्वरूपेणव प्रका'
शते । स्वरूपेणैव प्रकाशमानस्य चास्य वस्तुस्वभावादेव विचित्रां परिणतिमासादयन् कमनीशेऽकमनीयो वा छटपटादिर्न । 卐 मनोगपि विक्रियाय कल्पते । तथा बहिरर्थः शब्दो रूपं गंधो रसः पर्ची गुणद्रध्ये च देवदत्तो यज्ञदत्त मिव हस्ते गृहीत्या मां भृण मां परम मा जित मां सिम
मायालेति स्वनाने नात्मानं प्रयोजयति। नचात्माप्ययःकांतोपलकृष्टा-.. । यसूचीवन स्वस्थानात्प्रच्युत्य तान् ज्ञातुमायाति । किंतु वस्तुस्यभ यस्य परेणोत्पादयितुमशक्यत्वात् परमुत्पादयितुमशक्त+ त्वाच्च यथा तदसन्निधाने तथा तत्सन्निधानेऽपि स्वरूपेणैव जानीते। स्वरूपेण जानतश्चास्य वस्तुस्वभावादेव विचित्रां परि-..
पंतिमासादयंतः कमनीया अकमनीया वा शब्दादयो बहिरा न मनागपि विक्रियायें कल पेरन् । एवमास्मा परं प्रसि। 卐 उदासीनो नित्यमेवेति वस्तुस्थिनिः, तथापि यद्रागद्वेषौ तदज्ञानं ।
अर्थ-निंदाके अर स्तुतीके वचन हे ते बहुत प्रकार पुद्गल परिणमे है .तिनिक सुणिकरि ... का यह अज्ञानी जीव ऐसे माने है, जो मोकू कह्या; ऐसे मानि रूसे है रोस करें है तथा दोष करे है। + शब्दरूप परिणया पुद्गल द्रव्य है, सो यह पुद्गल द्रव्यका गुण है, अन्य है । ताते हे अज्ञानी जीव " तोकू तौ किछू ही न कह्या, तू अज्ञानी भया काहे• रोस करे है ? अशुभ अथवा शुभ शब्द है, फ़ सो तो ऐसें नाहीं कहे है, जो मोकू मुणि । बहुरि श्रोत्र इंद्रियक विषपमें आया जो शब्द,卐 ___ ताकू ग्रहण करनेकू अपने स्वरूपकू छोडि सो आत्मा भी नाहों प्राप्त होय है। बहुरि अशुभ + अथवा शुभ रूप है सो तोकू ऐसें नाहीं कहे है, जो तू मोकू देखि । बहुरि चक्षु इद्रियके विषयमें 5 .. आया जो रूप ताकू सो आत्मा भी ग्रहण करनेकू अपना प्रदेशनिकू छोडि नाहीं प्राप्त होय है। ..
बहरि अशुभ अथवा शुभ गंध है सो तो ऐसें नाहीं कहे है, जो तू मोकू सूधि । बहुरि घाण
इंद्रियके विषयमें आया जो गंध ताकू सो आत्मा भी ग्रहण करनेकू अपना प्रदेशकू छोडि नाही ' प्राप्त होय है। बहुरि अशुभ वा शुभ रस है सो तोकू ऐसें नाहीं कहे है, जो तू मोकू आस्वाद ।
करि । बहुरि रसन इंद्रियका विषयमें आया जो रस ताकू सो आत्मा भी ग्रहण करने अपना
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