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उपयोगकलक्षणशुद्ध जात्मैक एवाहमिति निश्चिन्वम् नित्यमेव शुद्धात्मसिखिलक्षणयाराधनया समानत्वादाराधक एब ____ अर्थ-संसिद्धि राध सिद्ध साधित आराधित ए शब्द एकार्थ हैं, साते जो चेतयिता आत्मा अपगतराध कहिये राधसू रहित होय सो आत्मा अपराध है। बहुरि जो आत्मा अपराध नाहीं ॥ निरपराध है, सो निःशंक ह-शंकारहित है । आपकू मैं हौं ऐसे जानता संता आराधनाकरि ..
टीका-परद्रव्यका परिहार करिके जो शुद्ध आत्माकी सिद्धि अथवा साधन सो राध कहिये, तहां जिस चेतयिता आत्माके राध कहिये शुद्ध आत्माकी सिद्ध अथवा साधन अपगत कहिये । दृरिवर्ती होय सो आत्मा अपराध है। अथवा याका दूसरा समासविग्रह ऐसा-जिस भावका राध दूरवर्ती होय, तिस भावकू अपराध कहिये सो तिस अपराधकरि जो आत्मा वर्ते सो आत्मा सापराध है, सो ऐसा आत्मा परद्रव्यके ग्रहणका सद्भावते शुद्ध आत्माकी सिद्धीके अभावतें ॥ ताके बंधकी शंकाका संभव होते आप स्वयं अशुद्धपणातें अनाराधक ही है-आराधना करने
वाला नाहीं है। बहुरि जो आत्मा अपराधरहित निरपराध है, सो समस्त परद्रव्यपरिग्रहका + 卐 परिहार करिके शुद्ध आत्माकी सिद्धीके सद्भावतें ताके बंधकी शंकाका असंभवकू होते ऐसा ।।
निश्चय करता वर्ते-जो मैं उपयोग ही है एक लक्षण जाका ऐसा एक शुद्ध आत्मा ही है। ॐ सो आत्मा नित्य ही शुद्ध आत्माकी सिद्धि है लक्षण जाका रेसी आराधनाकरि वर्तमान होय
है तातें आराधक ही है।
___ भावार्थ-संसिद्धि राध सिद्धि साधित आराधित इनि शब्दनिका अर्थ एक ही है। सोम ॥ इहां राध नाम शुद्ध आत्माकी सिद्धि अथवा साधनका है, सो जाकै यह नाहीं, सो आमा ।
सापराध है । अर यह जाकै होय, सो निरपराध है । सो सापराध है ताके बंधकी शंका संभवे ॥ 卐 है, सात अनारापक है। अर निरपराध है सो निःशंक भया अपने उपयोगमें लीन होय, तब
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