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को गाम भणिज्ज वुहो णादु सवे परोदये भावे । मज्झमिणं ति य वयणं जाणतो अप्पयं सुद्धं ॥१३॥
प्राम को नाम भणे बुधः ज्ञात्वा सर्वान् परोदयान् भावान् ।
卐 ममेदमिति वचनं जाननात्मानं शुद्धं ॥१३॥ . आत्मख्याति:-यो हि परात्मनोनियतस्वलक्षण विभागपातिन्या प्रजया ज्ञानी स्यात् स खल्वेकं चिन्मात्र माव- 5
मात्मीयं जानाति शेषांश्च सर्वानेच भावान् परकीयान जानाति । एवं जानन कथं परभावान्ममामी इति व याद परात्ममनोनिश्चयेन जामिना । अतः सर्वथा चिद्भाव एव गृहीतव्यः शेषाः सर्वे एव मावाः प्रहातन्या इति । .. सिद्धांतः। ॥ अर्थ-ज्ञानी है सो अपना स्वरूपकं जानिकरि अर सर्व ही परके भावनिकू जानिकरि अर - ए मेरे हैं ऐसा क्चन कौन कहै ? ज्ञानी पंडित तो नाहीं कहै। कैसा है ज्ञानी ? अपना शुद्ध र " आत्माकू जानता संता है। 卐 टीका-जो पुरुष आत्मा अर परका निश्चितस्वलक्षणके विभागविर्षे पड़नेवाली जो प्रज्ञा ॥
ताकरि ज्ञानी होय है, सो पुरुष निश्चयकरि एक चैतन्धमात्र अपना भाव ताकू तो अपना जाने .. 卐 है। बहुरि बाकी सर्व ही भावनिक परके जाने है। ऐलें जानता संता परके भावनिक “ए 1- मेरे हैं ऐसे कैसें कहै ? ज्ञानी तौ नाहीं कहै। जाते परके अर आपके निश्चयकरि स्वस्वा- .. 1 मिपणाका संबंधका असंभव है । यातें सर्वथा चिदभाव ही एक ग्रहण करने योग्य है। अवशेष ॥ 45 सर्व ही भाव त्यागने योग्य हैं ऐसा सिद्धांत है ।
___ भावार्थ-लोकमें भी यह न्याय है, जो सुबुद्धि न्यायवान होय, सो परके धनादिककू 5 अपना न कहै । तैसें ही सम्यग्ज्ञानी है सो समस्त ही परद्रव्यकू अपना बनावे नाहीं । अपना ॥ .- निजभावहीकू अपना जानि ग्रहण करे है। अब इस अर्थका कलशरूप काव्य कहे हैं।
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