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जज ॐ ॥ ॥ ॥॥
卐 बहरि धर्मादिकरूप हैं ते ज्ञेयमय हैं। ऐसें ज्ञानशेयका विशेष न जाननेकरि भिन्न न्यारा आत्माका +
अज्ञानतें में धर्मकू जानू हूँ ऐसा भी अज्ञानरूप अध्यवसान है। बहुरि भिन्न आत्माका न
देखनेकरि श्रद्धान न होनेकरि यह अध्यवसान मिथ्यादर्शन है । बहुरि भिन्न आत्माका अना-का - चरणते यह अध्यवसान अचारित्र है । तातें ए अध्यवसान हैं ते समस्त ही बंधके निमित्त हैं। " सो जिनिक ए अध्यवसान विद्यमान नाहीं हैं, तेही मुनि प्रधान हैं । तिनिळू मुनिकुञ्जर कहिये।" 卐 से केई विरले हैं । ते कैसे हैं ? सर्व अन्यद्रव्यभावनितें भिन्न आत्मा सत्तारूप द्रव्यदृष्टीकरि है - काहू ते उपज्या नाही, तातें अहेतुक एक ज्ञायकभावस्वरूप अर सत्ता अहेतुक एकज्ञानरूप ऐसा
आत्माकू जानते संते हैं। बहुरि तिसहीकू सम्यक्प्रकार देखते श्रद्धान करते संते हैं। बहुरि , 5 तिसहीकू आचरते संते हैं । बहुरि निर्मल स्वच्छंद स्वाधीनप्रवृत्तिरूप उदयकू प्रास होता अमंद1. प्रकाशरूप है अंतरंगज्योति स्वरूप जिनिक ऐसे हैं । सातें अज्ञान आदिके अत्यंत अभावतें शुभ तथा अशुभकर्मकरि ते नाही लिपे हैं।
भावार्थ-यह अध्यवसान हैं ते मैं पर... हणू हूँ ऐसे हैं, तथा मैं परद्रव्यकू जानू हूं ऐसे ।। 1. हैं, सो आत्माके अर रागादिकके तथा आत्माके अर ज्ञे यरूप अन्यद्रव्यके जेतें भेद न जाने, " ते प्रवर्ते हैं । सो भेदविज्ञानविना मिथ्याज्ञानरूप हैं तथा मिथ्यादर्शनरूप हैं तथा मिथ्या- 5
चारित्ररूप हैं। ऐसे तीन प्रकार प्रवतें हैं । सो जिनिकै नाही ते मुनिकुंजर हैं । ते आत्मा .. सम्यक् जाने हैं, सम्यक् अद्धे हैं, सम्यक् आचरे हैं । तातें अज्ञानके अभावतें सम्यग्दर्शनज्ञान
चारित्ररूप भये संते कर्मनितें नाहीं लिपे हैं। आगे पूछे है कि अध्यवसान बारबार कहते है # आये, सो यह अध्यवसान कहा है ? याका रूप नीकै समशे नाही ऐसें पूछे अध्यवसानका रूप,
प्रगटकरि दिखाये हैं। गाया