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55도
अधःकर्मोद्देशिकं च पुद्गलमयमिदं द्रव्यं ।
कथं तन्मम भवति कृतं यनित्यमचेत्नमुकं ॥५१॥ आत्मख्यातिः--यथाधाकर्मनिष्पन्नमुद्देशनिष्पन्नं च पुदगलदम्यानेमित्तभूतमात्याचक्षाणो नैमिषिकभूतं बंध- + + साधकं भावं न प्रत्याचप्टे तथा समस्तमपि परद्रव्यमप्रत्याचक्षाणस्तन्निमितकं भावं न प्रत्याचप्टे । यथा पाषाकर्मादीन् "पुद्गलद्रव्यदोषान नाम करोत्यात्मा परद्रव्यपरिणामत्वे सति, आत्मकार्यत्वाभावात् ततोऽधःकर्मोद्देशिकं च पुद्गल- फ़ 卐 द्रव्यं न मम कार्य नित्यमचेतनत्वे सति मत्कार्यत्वाभावात् इति तत्वज्ञानपूर्वकं पुद्गलद्रव्यं निमित्तभूतं प्रत्याचक्षाणो
नैमिचिकभृतं बंधसाधकं भावं प्रत्याचष्टे तथा समस्तमपि परद्रन्यं प्रत्याचक्षाणस्तन्निमित्र भावं प्रत्याचपटे एवं द्रव्य- ॥ 卐 भावयोरस्ति निमित्तनैमित्तिकभाषः ।
अर्थ-अधःकर्मकू आदि लेकरि जे ए पुद्गलद्रव्यके दोष हैं, तिनिकू ज्ञानी कैसे करे ? जातें फए नित्य ही सदा पुदगलद्रव्यके गुण हैं । बहुरि यह अधःकर्म अर उद्देशिक है सो पुद्गलमय - 1- द्रव्य है, ज्ञानी यह जाने है, जो यह मेरा किया कैसे होय ? जो सदा अचेतन कया है।
__टीका-जैसें अधःकर्मकरि निपज्या बहुरि उद्देशकरि निपज्या जो आहार आविक पुद्गल है ॐ द्रव्य, सो भावनिकू निमित्तभूत है। जैसा भक्षण करें तैसा भाव होय, सो ऐसें द्रव्यकू ..
अप्रत्याख्यानरूप करता त्याग न करता जो मुनि, सो तिस द्रव्यके नैमित्तिकभूत जे भाव, ते । 卐 बंधके साधक हैं, तिनिक भी त्याग न कर है; तैसे ही समस्त परद्रव्यकू जो त्यागे नाहीं है, सो .
तिसके निमित्ततें होते भावनिकू भी नाहीं त्यागे है। बहुरि जैसें अधःकर्म आदिक पुद्गलबव्यनिकू 卐 आत्मा नाहीं करे है, जातें ए पर पुद्गलद्रव्यके परिणाम हैं, तिसपणाकू होते आत्माकै कार्य-' .. पणाका इनिके अभाव है; ताते ज्ञानी ऐसें जाने “जो अधाकर्म उद्देशिक पुद्गलद्रव्य हैं, ते मेरे
कार्य नाहीं हैं, जाते ए नित्य ही अचेतनपणाके होते मेरे कार्यपणाका इनिकै अभाव है" ऐसे तत्त्वज्ञानपूर्वक निमित्तभूत पुद्गलद्रव्यकू त्याग करता संता मुनि बंधका साधक जो नैमिचिक भूतभाव, ताकू भी त्यागे है, तैसें ही समस्त परद्रव्यकू त्याग करता संता तिस परद्रव्यके
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