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भये थे, तिनि वर्तमान में भला जाने, तिनिसूर है तो अतिक्रमण है + बहुरि आगामी कालमें परद्रव्यकी वांछाकरि ममत्व राखे सो द्रव्य अप्रत्याख्यान है । बहुरि तिनिके 5 निमित्त आगामी कालमै रागादिभाव होयंगे तिनिकी वांछा राखै, ममत्व राखै, सो भाव अप्रत्या ख्यान है । सो यह द्रव्य अप्रतिक्रमण भाव अप्रतिक्रमण, बहुरि द्रव्य अप्रत्याख्यान भाव अप्रत्या ख्यान ऐसा दोय प्रकारका उपदेश है, सो द्रव्यभावके निमित्तनैमित्तिक भावकुं जनावे है । परद्रव्य तौ निमित्त है अर नैमित्तिक रागादिक भाव हैं; सो जेतें निमित्तभूत परद्रव्यका अप्रतिक्रमण f अप्रत्याख्यान या आत्माकै है, तेतें तौ रागादिभावनिका अतिक्रमण अप्रत्याख्यान है । अर जेतें 卐 रागादिभावनिका अप्रतिक्रमण अप्रत्याख्यान हैं, तेतैं रागादिभावनिका कर्ता ही है। अर जिस क काल निमित्तभूत परद्रव्यका प्रतिक्रमण प्रत्याख्यान करें, तिसकाल नैमित्तिक रागादिभावनिका 5 भी प्रतिक्रमण प्रत्याख्यान होय । धरि रागादिभावनिका प्रतिक्रमण प्रत्याख्यान होय सव साक्षात् अकर्ता ही है । ऐसें आत्मा स्वयमेव तो रागादिभावनिका अकर्ता ही है । यह परद्रव्यका निमित्त कहनेतें जानिये है। आगे द्रव्यके अर भावके निमित्तनैमित्तिक भावका उदाहरण यह है, सो गाथामें कहे हैं। गाथा
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आधाकम्मादीया पुग्गलदव्वस्स जे इमे दोसा ।
कह ते कुव्वदि णाणी परदव्वगुणादु जे गिचं ॥ ५०॥ आधाकम्मं उद्देसियं च पुग्गलमयं इमं दव्वं ।
कह तं मम होदि कयं जं णिच्चमचेदां वृत्तं ॥५१॥ अधः कर्मायाः पुद्गलद्रव्यस्य य इमे दोषाः ।
कथं तान्करोति ज्ञानी परद्रव्यगुणास्तु ये नित्यं ॥५०॥
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