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कस्तर्हि मोक्षहेतुः इति चेत्
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अर्थ - जैसें कोई बंधनकर बंध्या पुरुष है सो तिनिबंधन चितवता संता तिसका सोच करता संता भी मोक्षकूं नाहीं पावे है, तैसें कर्मबंधकी चिंता करता जीव है सो भी मोक्षकू नाहीं पावे है |
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टीका - अन्य कई ऐसें माने हैं जो बंधकी चिंताका प्रबंध है, सो मोक्षका कारण है सो 5 भी मानना असत्य है । इहां भी अनुमानका प्रयोग ऐसा ही है, जो कर्मबंधनकरि बंध्या जो 5 पुरुष, ताकै तिस बंधकी चिंताका प्रबंध है— जो यह बंध कैसे छूटेगा ? या रीति मनकूं लगाय 5 राखे सो भी बंघका अभावरूप जो मोक्ष ताका कारण नाहीं है । जातें यह चिंताप्रबंध बंधतें छूटने का कारण नाहीं । जैसे कोई बेडी सांखलतें बध्या पुरुष तिस बंधकी चिंता करवो करे, छूटनेका उपाय न करे, सो तिस बेडी आदिके बंधनतें छूटे नाहीं । तैसें कर्मबंधकी चिंताप्रबंध मोक्ष नाहीं । इस कथन करि कर्मबंधविषे चिताप्रबंधस्वरूप विशुद्ध धर्मध्यानकरि अंध है बुद्धि जिनकी तिनिकू समझाईए हैं ।
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भावार्थ - कर्मबंधी चिंतामैं मन लग्या रहै, सोच करवो करें तो भी मोक्ष होय नाहीं । यह धर्मध्यानरूप शुभपरिणाम है, सो केवल शुभपरिणामहीर्ते मोक्ष माने हैं, तिनिकू उपदेश है * जो शुभपरिणामतें मोक्ष नाहीं । आगे पूछे हैं “जो बंधके स्वरूपका ज्ञानतें मोक्ष नाहीं, तिसका सोच कीये मोक्ष नाहीं, तौ मोक्षका कारण क्या है ?” ऐसें पूछे मोक्ष होनेका उपाय कहे हैं। फ
गाथा
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जह बंधे छित्तूणय बंघणबद्धो दु पावदि विमोक्खं । तह बंधे छित्तूणय जीवो संपावदि विमोक्खं ॥५॥
5 प्रामुख
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