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+ बंधनका प्रदेशबंध स्थितिबंध प्रकृतिबंध अनुभागबंध याप्रकार है ऐसें जानता संता है, सो भी 5 नमप - कर्म नाहीं छूट है, बहुरि जो आप रागादिकू दुरि करि शुद्ध होय, तौ छूटे है।
टीका--आत्माका अर बंधका विधाकरण कहिये न्यारा न्यारा करना सो मोक्ष है। तहां म 5 केई ऐसे कहे हैं जो बंधका स्वरूपका ज्ञानमात्रहीत मोक्ष है, बंधका स्वरूप जानना सो ही न
मोक्षका कारण है सो यह कहना असत्य है, जातें ऐसा अनुमानका प्रयोग है जो कर्मकरि बंधे पुरुषकै बंधका स्वरूपका ज्ञानमात्र ही मोक्षका कारण नाहीं है । जातें यह जानना ही कर्मते.
छूटनेका कारण नाहीं है, जैसे बेडी आदि करि बंध्या पुरुषकै तिल वेडी आदि बंधनका स्वरूपका - जाननेमात्रपणा ही वेडी आदि काटनेका कारण नाहीं होय है, तैसें ही कर्मका बंधका स्वरूप ॥
जाननेमात्रहीत कर्मबंधते छुटै नाहीं है । इस कथनकरि कर्मके बंधका प्रपंच कहिये विस्तार तिसकी रचना अनेक प्रकार होना तिसका जाननेमात्रकरि जे केई अन्यमती आदि मोक्ष माने , 卐 हैं, ते इसका ज्ञानमात्रहीविर्षे संतुष्ट हैं, तिनिका उत्थापन कीजिये हैं।
भावार्थ-केई अन्यमती ऐसे माने हैं, जो बंधका स्वरूप जानतेत ही मोक्ष है तिनिका कहनेका इस कथनकरि निराकरण जानना । जाननेमात्रतें बंध कटे नाहीं। बंध तौ काटथा ॥ कटे। आगे कहे हैं, जो बंधकी चिंता किये भी बंध कटे नाहीं । गाथा--
जह बंधे चिंतंतो बंधणबद्धो ण पावदि विमोक्खं । तह बंधे चिंतंतो जीवोविण पावदि विमोक्खं ॥४॥
यथा बंधं चिंतयन् बंधनबद्धो न प्राप्नोति विमोक्षं।
तथा बंधं चितयन् जीवोऽपि न प्राप्नोति विमोक्षं ॥४॥ 卐 आत्मख्यातिः-बंधचिताप्रबंधो मोक्षहेतुरित्यन्ये तदप्यसत् न कर्मवइस्प बंधचिताप्रबंधनावमा मोषदेवरहेतृत्वात् ॥
निगडादिबद्धस्य बंधचिताप्रबंधवत् । एतेन कर्मबंधविषयचिंताप्रबंधात्मकविशुदूधर्मध्यानाधबुदयो चोभ्यते ।