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5 अर्थ---बुद्धि व्यवसाय बहुरि अध्यवसान बहुरि मति विज्ञान चित्त भाव बहुरि परिणाम ए सर्वक मय... एकार्थ ही हैं, नाम भेद है, इनिका अर्थ न्यारा नाहीं।
____टीका-आपका अर परका दोऊका भेदज्ञान न होते संते जो जीवकी अव्यवसिति कहिये ॥ निश्वितमात्र होय सो अध्यवसान है । सोही बोधनमात्रपणात बुद्धि है बहुरि सोही व्यवसान ...
कहिये निश्चयमात्रपणातें व्यवसाय है । लो ही जाननेमात्रपणातें मति है। बहुरि सोही विज्ञप्ति-5 卐 मात्रपणातें विज्ञान है। बहुरि सो ही चेतनमात्रपणातें चित्त है। बहुरि सो ही चेतनका भवन- ..
मात्रपणातें भाव है। बहुरि सोही परिणमनमात्रपणातें परिणाम है । ए सर्व ही एकार्थ हैं।। ____ भावार्थ-ए बुद्धि आदि आठ नाम कहे, ते सर्व ही चेतन आत्माके परिणाम हैं । सो जेते आपापरका भेदज्ञान न होय तेते परविर्षे अर आपविर्षे एकपणाका निश्चयरूप बुद्धि आदिक" होय हैं । सो ही अध्यवसान नाम है। आगै अगिले कथनकी सूचनिकाके अर्थरूप काव्य कहे हैं, “जो अध्यवसान त्यागनेयोग्य कहा है, सो तहां ऐसी संभावना है, जो व्यवहारका त्याग कराया है, निश्चयनयका ग्रहण कराया है" ऐसे कहे हैं।
शार्दूलविक्रीडितछन्दः सर्वत्राध्यवसानमेवमखिलं. त्याज्यं यदुक्त जिनः तन्मन्ये व्यवहार एव निखिलोप्पन्याश्रयस्त्याजितः।
सम्पङ्निश्चयमेकमेव तदमी निष्कम्पमाक्रम्य किं शुद्धज्ञानधने महिन्नि न निजे बन्नन्ति सन्तो धृतिम् ॥११॥ __ अर्थ-सर्व ही वस्तुनिविर्षे जो समस्त अध्यवसान है, सो जिनभगवान् त्यागने योग्य कहा "
है। सो आचार्य कहे हैं, हम ऐसे माने हैं "जो परके आश्रय प्रवर्तता जो व्यवहार सो सर्व ही 1- छुडाया है” तातें हम उपदेश करे हैं-जो सत्पुरुष हैं, ते सम्यक्प्रकार एक निश्चयहीकू निष्कम्प
" जैसे होय तैसें निश्चल अंगीकार करिके अर शुद्धज्ञानघनस्वरूप अपना महिमा आत्मस्वरूप,5 4 तावि थिरता क्यों नाहीं धारे हैं ?
भावार्थ-जिनेश्वर देव अन्य पदार्थ निविर्षे आत्मबुद्धिरूप अध्यवसान छुडाया है, सो यह
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