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सर्वान् करोति जीवानध्यवसानेन तियङ्नेरयिकान् । देवमनुजांश्च सर्वान् पुण्यं पापं च नेकविध ॥३२॥ धर्माधर्म च तथा जीवाजीवो अलोकलोकं च ।
सन् करोति जीतः आमदासानेन शतानं ॥३३॥ ___ आत्मख्याति:-यथायमेव क्रियागर्भहिंसाध्यवसानेन हिंसकं, इतराध्यवसानैरितरं च; आत्मात्मानं कुर्यात् , तथा ..
विपच्यमाननारकाध्यवसानेन नारकं, विपच्यमानतिर्यगध्यवसानेन तिर्य चं, विपच्यमानमनुष्याम्यवसानेन मनुष्यं, विपच्या 卐 मानदेवाज्यवसानेन देवं, चिपच्यमानसुखादिपुण्याध्यक्सानेन पुण्यं, विपच्यमानदुःखादिपापाग्यवसानेन पापमात्मानं .. __ कुर्यात् । तथैव च ज्ञायमानधर्माध्यवसानेन धर्म, ज्ञायमानाधर्माध्यवसानेनाधर्म', बायमानाजीवाध्यवसानेन जीव, ज्ञाय
मानाजीवाध्यवसानेनाजीवं, झापमानलोकाध्यवसानेन लोकं, शायमानालोकानाशाध्यवसानेनालोकाकाशमात्मानं कुर्यात् । .. ___ अर्थ-जीव है सो अध्यवसानकरि आपके तिर्यच नारक देव मनुष्य ए सर्व ही पर्याय हैं । तिनिकू करे है। बहुरि पुण्य पाप हैं तिनि सर्वहीकू अनेक प्रकार आपके करे है । बहुरि धर्म अधर्म तथा जीव अजीव तथा लोक अलोक इनि सर्वहीकू इस अध्यवसानकरि आपरूप करे है।"
टीका-जैसे यह आत्मा पूर्वोक्त क्रिया है गर्भ कहिये मध्य जाके ऐसा हिंसाका अध्यवसानकरि 卐 आपकू हिंसक करे है। बहुरि अहिंसाका अध्यवसानकरि अहिंसक करे है । बहुरि अन्य अध्य-.
वसानकरि अन्य बहुत प्रकार करे है । तैसें ही विपच्यमान कहिये उदयमें आया जो नारकका अध्यवसान, ताकरि आपकू नारकी करे है। बहुरि उदय आया जो तिर्यचका अध्यबसान, ताकार
आपकू तिथंच करे है । बहुरि उदय आया जो मनुष्यका अध्यक्सान, ताकरि आपकू मनुष्य करे " - है। बहुरि उदय आया जो देवका अध्यवसान, ताकरि आपकू देव करे है। बहुरि उदय आया )
जो सुख आदि पुण्यका अध्यवसान, ताकरि पुण्यरूप आपकू करे है । बहुरि उदय आया जो दुःख ...
आदि पापका अध्यवसान, ताकरि आपकू पापरूप करे है। तेसें ही जाननेमें आया जो धर्म, + ताका अध्यवसानकरि आपकू धर्मरूप करे है। बहुरि जाण्या हुवा अधर्मका अध्यवसानकरि ।
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