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टोका-परजीवनिके प्राणनिका वियोग है सो अपना कर्मका उदयका विचित्रपणाका वशिकरि है। सो कदाचित् होऊ अथवा कदाचित् मति होऊ जो "यह में हर्जू हो" ऐसा अहंकार- 卐.... - रसकरि भरथा हिंसाके विर्षे अध्यवसाय है-अभिप्राय है सोही निश्चयते तिस अभिप्रायवाले "पुरुषके बंधका कारण है, जात निश्चयनयको पक्षमें परका भाव जो प्राणनिका वियोग करना, सो , परके करनेकुं असमर्थपणा है।
भावार्थ-निश्चयनयकरि परका प्राणनिका वियोग करना परका किया होय नाही, ताके 5 卐 कर्मके उदयकी विचित्रताकरि कदाचित् होय है, कदाचित् नाहीं होय है तातें जो ऐसा माने है
" अहंकार करे है “जो में परजीवकूमारूह" सो यह अहंकाररूप अध्यवसाय है । सो अज्ञानमय । 卐है। सो यह ही हिंसा है, अपना विशुद्धचेतन्य प्राणका घात है अर यह ही बंधका कारण है, .... यह निश्चयनयका मत है। इहां व्यवहारनयकू गोणकरि कया जानना, सो कथंचित् जानना। ॐ सर्वथा एकांतपक्ष है सो मिथ्यात्व है। आगै यह हिंसाका अध्यवसाय कसा तैसें ही तिसहीकू 1. अन्य कार्य निविर्षे भी पुण्यपापका बंधका कारणपणाकरि प्रत्यक्ष दिखावे है। गाथा
एवमलिये अदत्ते अवमचेरे परिग्गहे चेव । कीरदि अज्झवसाणं जं तेण दु वज्झदे पावं ॥२७॥ तहय अचोजे सच्चे वंभे अपरिगहत्तणे चेव । कीरदि अज्झवसाणं जं तेण दु वज्झदे पुगणं ॥२८॥
एवमलीकेऽवत्तेऽब्रह्मचर्ये परिग्रहे चैव । क्रियतेऽध्यवसानं यत्तेन तु बध्यते पापं ॥२७॥
10 तथापि च सत्ये दत्ते ब्राह्मणि, अपरिग्रहत्वे चैव । क्रियतेऽध्यवसानं यत्तेन तु बध्यते पुण्यं ॥२८॥
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