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अपना स्वरूपकू नाही पाये है-नाहीं उपजे है। जो बाह्यवस्तुका आश्रय न लेकर भी ___ अध्यवसान उपो, तो जैसे सुभाटकी माताकी पुत्र जो सुभट, साका सद्भाव होते, तिसका 卐 आश्रय लेकरि काहूके अध्यक्सान होय है, जो सुभटकी माताका पुत्रकू मैं हणंह, सैसे ही .- वांझका पुत्रका सद्भाव न होते भी तिसके आश्रय भी “मैं बंध्यासुतक मारू ह" ऐसा
अध्यवसान उपजै? सो तो नाहीं उपजे है । सो ऐसे विना आश्रय अध्यवसान उपजे नाहीं। । प्रवंध्याका पुत्र ही नाही, तो मारनेका अध्यवसाय कैसा उपजै? तातें: यह नियम है-जो बाह्य
"वस्तू विना निराश्रय अध्यवसान उपजै नाही, याहोते अध्यवसानका आश्रयभूत जो बाझवस्तु, मताका अत्यंत प्रतिषेध है, ता” हेतु जो कारण, ताका प्रतिषेधकार ही हेतुमान् जो कार्य, ताका ___ प्रतिषेध है यह न्याय है । बाह्यवस्तु अध्यवसानका हेतु है, तातें ताका प्रतिषेधकरि अध्यवसानका 5 प्रतिषेष होय है। बहुरि बाह्यवस्तुके बंधका हेतु जो अध्यवसान, ताका हेतुपणा होते भी 1- बाझवस्तु बंधका हेतु नाहीं है, यामैं व्यभिचार है । जातें कोई मुनी'द्र ईर्यासमितिरूप प्रवर्ते है
ताके चरणकरि हण्या गया जो कालका प्रेरया अतिवेगकरि शीघ्र आय पडया कोई उडता जीव,
ताके मरनेते मुनी द्रकू हिंसा न लागै; तेले अन्य वस्तु भी बंधके कारण माने, ते अपंधके "भी कारण हैं, सातें बाह्यवस्तुके बंधका कारणपणा माननेविर्षे अनेकांतिक हेत्वाभासपणा है + व्यभिचार आवे है। यात निश्चयकरि बाह्यवस्तुकै वंधका कारणपणा निर्वाध सिद्ध होय नाही।
यातें जीवके बाद्यवस्तु अतद्भावरूप है, सो बंधका कारण नाहीं । तदभावरूप अध्यवसान 卐 है सो ही बंधका कारण है। .. भावार्थ-बंधका कारण निश्चयनपरि अयवसान ही है। अर बाझवस्तु है सो अध्य
वसानका आलंबन है । तिनिकू आलंव्यकरि अध्यवसान उपजै है, तातें अध्यवसानका कारण जज कहिये है । विनावाद्यवस्तु निराश्रय अध्यवसान उपजे नाही, याहीते बाह्यवस्तुका त्याग कराया 'है। अर बंधका कारण पाद्यवस्तु कहिये, तौ यामैं व्यभिचार आवे है। जो कोई जायगां कारण