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________________ 55 अपना स्वरूपकू नाही पाये है-नाहीं उपजे है। जो बाह्यवस्तुका आश्रय न लेकर भी ___ अध्यवसान उपो, तो जैसे सुभाटकी माताकी पुत्र जो सुभट, साका सद्भाव होते, तिसका 卐 आश्रय लेकरि काहूके अध्यक्सान होय है, जो सुभटकी माताका पुत्रकू मैं हणंह, सैसे ही .- वांझका पुत्रका सद्भाव न होते भी तिसके आश्रय भी “मैं बंध्यासुतक मारू ह" ऐसा अध्यवसान उपजै? सो तो नाहीं उपजे है । सो ऐसे विना आश्रय अध्यवसान उपजे नाहीं। । प्रवंध्याका पुत्र ही नाही, तो मारनेका अध्यवसाय कैसा उपजै? तातें: यह नियम है-जो बाह्य "वस्तू विना निराश्रय अध्यवसान उपजै नाही, याहोते अध्यवसानका आश्रयभूत जो बाझवस्तु, मताका अत्यंत प्रतिषेध है, ता” हेतु जो कारण, ताका प्रतिषेधकार ही हेतुमान् जो कार्य, ताका ___ प्रतिषेध है यह न्याय है । बाह्यवस्तु अध्यवसानका हेतु है, तातें ताका प्रतिषेधकरि अध्यवसानका 5 प्रतिषेष होय है। बहुरि बाह्यवस्तुके बंधका हेतु जो अध्यवसान, ताका हेतुपणा होते भी 1- बाझवस्तु बंधका हेतु नाहीं है, यामैं व्यभिचार है । जातें कोई मुनी'द्र ईर्यासमितिरूप प्रवर्ते है ताके चरणकरि हण्या गया जो कालका प्रेरया अतिवेगकरि शीघ्र आय पडया कोई उडता जीव, ताके मरनेते मुनी द्रकू हिंसा न लागै; तेले अन्य वस्तु भी बंधके कारण माने, ते अपंधके "भी कारण हैं, सातें बाह्यवस्तुके बंधका कारणपणा माननेविर्षे अनेकांतिक हेत्वाभासपणा है + व्यभिचार आवे है। यात निश्चयकरि बाह्यवस्तुकै वंधका कारणपणा निर्वाध सिद्ध होय नाही। यातें जीवके बाद्यवस्तु अतद्भावरूप है, सो बंधका कारण नाहीं । तदभावरूप अध्यवसान 卐 है सो ही बंधका कारण है। .. भावार्थ-बंधका कारण निश्चयनपरि अयवसान ही है। अर बाझवस्तु है सो अध्य वसानका आलंबन है । तिनिकू आलंव्यकरि अध्यवसान उपजै है, तातें अध्यवसानका कारण जज कहिये है । विनावाद्यवस्तु निराश्रय अध्यवसान उपजे नाही, याहीते बाह्यवस्तुका त्याग कराया 'है। अर बंधका कारण पाद्यवस्तु कहिये, तौ यामैं व्यभिचार आवे है। जो कोई जायगां कारण
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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