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। कथमयमध्यवसायो शानमिति चेत्र ? . अर्थ-जो जीव ऐसैं माने है, जो में परजीवनिकू जीवाऊ हौं, बहुरि परजीव माकू जीवावे .....
हैं, सो मूढ़ है, मोही है, अज्ञानी है ! वारि ज्ञानी माते विपरीत है , येसे नाहीमाने, यातें 卐उलटा माने है। .. टीका-परजीवनिकू में जीवाऊ हो, बहुरि परजीव मेरे ताई जीवावे हैं, ऐसा अध्यवसाय
कहिये निश्चयरूप आशय है, सो निश्चयकर अज्ञान है । सो यह जाकै होय सो जीव अज्ञानी-पणातें मिथ्यादृष्टि है । बहुरि जाकै यह अध्यवसाय नाहीं है सो जीव ज्ञानीपणातें सम्यग्दृष्टि है। ___ भावार्थ-जो ऐसें माने हैं, जो मोकू पर जीवावे हैं, अर में पर जीवाऊ हौं, सो यह अज्ञान है, जाके यह अज्ञान है सो मियादृष्टि है । जाकै यह अज्ञान नाहीं सो सम्यग्दृष्टि हैं। आगै पूछे है, जो यह जीवावनेका अध्यवसाय अज्ञान कैसा है ? ताका उत्तर कहे हैं । गाथा
आउउदयण जीवदि जीवो एवं भणंति सव्वण्डू । आउं च ण देसि तुमं कहं तए जीविदं कदं तेसिं ॥१५॥ आऊदयेण जीवदि जीवो एवं भणंति सब्वण्हू । आउं च ण दित्ति तुहं कहं णु ते जीविदं कदं तेहिं ॥१६॥
आयुरुदयेन जीवति जीव एवं भणन्ति सर्वज्ञाः । आयुश्च न ददासि त्वं कथं स्त्रया जीवितं कृतं तेषां ॥१५॥ आयुरुदयेन जीवति जीव एवं भणन्ति सर्वज्ञाः ।
आयुश्च न ददाति तव कथं तु ते जीवितं कृतं तैः ॥१६॥ - आत्मरूपातिः–जीवितं हि तावज्जीवानां स्वापुःकमोदयेनैव, तदभावे तस्य भावयितुमशक्यत्वात् । आयु: कर्म
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