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निवास में आय मिलें । तैसें आत्मा भी अनेक विकल्पनिके मार्गकरि स्वभावतें च्युत भया भूमण
करता संता कोई विवेक भेदज्ञानरूप नीचा मार्गकरि आप ही आपकूं खेचता संता, अपने स्वभाव प्रा विज्ञानघन वर्षे आय मिले है ।
अब कर्ता कर्म अधिकारकूं पूर्ण किया है, सो कर्ता कर्मका संक्षेप अर्थके कलशरूप श्लोक कहे हैं।
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अनुष्ट छन्दः
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विकल्पकः परं कर्ता विकल्पः कर्म केल। न तु कर्तृ कर्मत्वं सविकल्पस्य नश्यति ||४०||
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अर्थ - विकल्प करनेवाला तौ केवल कर्त्ता है । बहुरि विकल्प है सो केवल कर्म है। अन्य किछू फ कर्ता कर्म नाहीं है । यातें जो विकल्पसहित है, ताका कर्ता कर्मपणा कदाचित् भी नष्ट नाहीं हो है । 卐
भावार्थ- जहां तांई विकल्पभाव है, तहां तांई कर्ताकर्मभाव है। जिस काल विकल्पका
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अभाव होय, तिस काल कर्ताकर्मभावका भी अभाव होय है । अब कहे हैं, जो करे है सो करे ही है, जाने है सो जाने ही है।
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5 जो करे, हैं, सो कछू ही नाहीं जाने है । अर जो जाने है, सो कछू ही नाहीं करे है ।
भावार्थ-कर्ता है सो ज्ञाता नाहीं, अर ज्ञाता है सो कर्ता नाहीं । अब कहे हैं, ऐसे ही करने रूप क्रिपा अर जाननेरूप क्रिया दोऊ भिन्न हैं ।
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रथोद्धताछन्दः
यः करोति स करोति केवलं यस्तु वेति स तु वेति केवलम् ।
यः करोति न हि वेति स क्वचित् यस्तु वेत्ति न करोति स क्वचित् ॥ ५१॥
अर्थ- जो करे है, सो केवल करे ही है। बहुरि जो जाने है, सो केवल जाने ही है । बहुरि
इन्दवज्रा छन्दः
इप्तिः करोतौ न हि भासतेऽन्तः ज्ञशौ करोतिश्च न भासतेऽन्तः ।
शतिः करोतिश्च तो विभिन्ने ज्ञाता न कर्तेति ततः स्थितं च ॥ ५२ ॥
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