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रागो द्वेषो मोहश्चासूवा न सन्ति सम्यग्दृष्टेः । तस्मादासवभावेन दिदातवो न पलाया मानन्ति ॥१॥ हेतुश्चतुर्विकल्पोऽष्टविकल्पस्य कारणं भवति ।
तेषामपि च रागादयस्तेषामभावेन बध्यन्ते ॥१५॥ म आत्मख्याति:---रागद्वेषमोहा न संति सम्यग्दृष्टेः सम्यग्दृष्टित्वान्यथानुपपनेः । तदभावे न तस्य द्रव्यप्रत्ययाः
पुद्गलकर्महेतुत्वं विभ्रति द्रव्यप्रत्ययानां पुद्गलकमहेतुत्वस्य रागाद्यहेतुत्वात् । ततो हेत्वभावे हेतुमदभावस्य प्रसिद्धत्वाद 卐शानिनों नास्ति बंधः।
... अर्थ-राग द्वेष मोह ए आसूव हैं, ते सम्यग्दृष्टीकै नाहीं हैं। तातें आस्वभावविना द्रव्यप्रत्यय म ते कर्म बन्धनेकू कारण नाही हैं। मिथ्यात्वादि च्यारि प्रकार हेतु हैं सो अष्टप्रकार कर्मके 1- बन्धनेकू कारण हैं । बहुरि तिनि च्यारी प्रकारके हेतूकुं भी जीवके रागादिकभाव कारण हैं। "सोसम्यादृष्टीकै तिनि रागादिक भावनिका अभाव है। तातें सम्यग्दृष्टीकै बन्ध नाहीं है। - टीका-सम्यग्दृष्टीके राग द्वेष मोह नाहीं हैं । जातें राग द्वेष मोहका अभावविना सम्यग्दृष्टिपणा "बनें नाहीं । बहुरि तिनि रागद्वेषमोहके अभावतें तिस सम्यग्दृष्टीके द्रव्यासव हैं, ते पुद्गलकमकै । 卐 बन्धनेकू कारणपणा नाहीं धारे हैं। जाते द्रव्यासवनिकै पुद्गलकर्म बन्धनेका कारणपणाका 1
रागादिकहीके कारणपणा है । ताते कारणके कारणका अभाव होते कार्यका अभावका भलेप्रकार 卐 प्रसिद्धपणा है । तातें ज्ञानीके बन्ध नाही है। .. भावार्थ-सम्यग्दृष्टि रागद्वेषमोहका अभाव विना होय नाही', ऐसा अविनाभाव नियम कह्या ..
सो यह मिथ्यात्वसंबंधी रागादिकका अभाव जानना । तिनहीकू रागादिक गणे है। सम्यग्दृष्टि , जन भये पीछे किछु चारित्रमोहसंबंधी राग रहे सो इहां न गणिये है, ते गौण हैं । तातें तिनि भावा
"सवनिविना द्रव्याशव बंधके कारण नाही, कारणका कारण न होय, तब भी कार्यका अभाव है। 卐 यह प्रसिद्ध है । तातें सम्यग्दृष्टि ज्ञानी है, याकै बन्ध नाहीं है । इहां सम्यग्दृष्टीकू ज्ञानी कहनेकी
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