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" दिक भावनिका सद्भावकरि विषय सेवनेका फलका स्वामीपणातें विषयनिका सेवनेवाला हो ।
कहिये है। - भावार्थ-जैसे कोई व्यापारी धनका धना काहाटीपरि चाकर राख्या, सो हाटीका ..
काम व्यापार विणज देना लेना सर्व चाकर करे है, अर धनी अपने घर बैठा रहे है, हाटीसंबंधी 卐 कार्यकू नाहीं करे है। तहां विचारिये इस हाटोके तोटे नफेका स्वामी कोन है ? तहां परमार्थ ।। __ यह है-जो हाटीका कार्यसंबंधी तोटा नफाका स्वामी तो वो धनका धनी है, जाकर व्यापारा- " 5 दिक किया करे है, तोऊ स्वामीपणाका अभावतें तिसका फलका भोक्ता नाही है। अर-धनका - .. धनी किछू व्यापारादिक नाही करे है, तोऊ तिसका स्वामीपणातें तोटा नकाका फलका भोक्ता
ा है। तैसें संसारमें साहको ज्यौ तौ मिथ्यादृष्टि जानना अर चाकरको ज्यौं सम्यग्दृष्टि जानना । अब 卐 1. इस अर्थका समर्थनरूप सम्यादृष्टीके भावनिकी प्रवृत्तिका कलशरूप काव्य कहे हैं।
मन्दाक्रान्ताछन्दः सम्यग्दृष्टेभवति नियतं ज्ञानवैराग्यशक्तिः स्वं वस्तुत्वं कलयितुमयं स्वान्यरूपाप्तिमुक्त्या । यस्माद् ज्ञात्वा व्यतिकरमिदं तत्त्वतः स्वं परं च स्वस्मिन्नास्ते विरमति परात्सर्वतो रागयोगात् ॥६॥
सम्यग्दृष्टिः विशेषेण स्वपरावेवं तावज्जानाति卐 अर्थ-सम्यदृष्टीकै नियमते ज्ञान अर वैराग्यकी शक्ति होय है । जातें यह सम्पन्डष्टि अपना + ... वस्तुपणा यथार्थस्वरूप ताका अभ्यास करने... अपना स्वरूपका ग्रहण अर परका त्यागका विधि - करि, यह तो अपना आत्मस्वरूप है अर यह परद्रव्य है ऐसा दोऊका भेद परमार्थकरि जानि, 卐 .- अर आपविर्षे तौ तिष्ठे है, अर परद्रव्यते सर्व प्रकार रागके योगते विरक होय है। सो यह
रीति ज्ञानवैराग्यको शक्तीविना होय नाही। आगै इस काव्यका अर्थरूप गाया है। तहां कहे । -----Am मामाकरितो ऐसें जाने। गाथा-
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