________________
听听听听 s 乐乐 乐乐 乐
" रूप परिणमनेते माने । ऐसें परमार्थ अध्यात्मदृष्टिकर इहा व्याख्यान जानना । 卐 मिथ्यात्व विना चारित्रमोहसम्बन्धी उदयका परिणामकू इहां राग न कह्या है। जाते है .. सम्यग्दृष्टिकै ज्ञानवैराग्यशक्ति अवश्य होनो कया है। तहां मिथ्यात्व सहित ही राग· राग कहे हैं, प्राभूष + सो सम्यग्दृष्टीके है नाही, अर मिथ्यावसहित राग होय सो सम्यग्दृष्टि नाहीं, ऐसा विशेष... 5 + सम्यग्दृष्टि हो जाने है। मिथ्यादृष्टिका अध्यात्मशास्त्र में प्रथम तौ प्रवेश नाहीं, अर जो प्रवेश करे,
तौ विपर्यय समझे है, व्यवहारकू सर्वथा छोडि भ्रष्ट होय है, अथवा निश्चयकूनीके नाहीं जानिक प्र व्यवहारहीते मोक्ष माने है, परमार्थतत्त्वविर्षे मूढ है। ताते यथार्थ स्याद्वादन्यायकरि सत्यार्थ
समझे सम्यक्त्वकी प्राप्ति होय है । आगे पूछे है कि, रागी सम्यग्दृष्टि कैसे न होय है ? ताका म उत्तर कहे हैं। गाथा
परमाणुमित्तियं पि हु रागादीणं तु विजदे जस्स। गवि सो जाणदि अप्पा गयं तु सवागमधरोवि ॥९॥ अप्पाणमयाणंतो अणप्पयं चेव सो अयाणतो। कह होदि सम्मदिट्टी जीवाजीवे अयाणंतो॥१०॥ युम्म।
परमाणुमात्रमपि खलु रोगादीनां तु विद्यते यस्य । नापि स जानात्यात्मानं सर्वागमधरोऽपि ॥९॥ आत्मानमजानन् अनात्मानमपि सोऽजानन् ।
कथं भवति सम्यग्दृष्टिर्जीवाजीवावजानन् ॥१०॥ आत्मरूपातिः-यस्प रागाद्यज्ञानभावानां लेशतोऽपि विद्यते सद्भावः, भवतु स श्रुतकेवलिसदृशोऽपि तथापि । ज्ञानमयभाषानामभावेन न जानात्यात्मानं | पस्त्वात्मानं न जानाति सोऽनात्मानमपि न जानाति स्वरूपपररूपसपासचा. 4
5 ३२३
अपि तयापि