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करणानि, केवलज्ञानिनामपि तत्प्रसंगात् । न सचित्ताचित्तवस्तूपघातः, समितितत्पराणामपि तस्प्रसंगात् । ततो न्यायबले- 5 मय 5 नैतदेवायातं यदुपयोगे रागादिकरणं संबंधहेतुः ।
अर्थ —नाम कहिये प्रगटकरि कहे हैं, जो जैसे कोई पुरुष अपने देहकै स्नेह कहिये तैलादिक
5 लगायकरि, अर रज जहां बहुत ऐसे स्थानविधै तिष्ठिकरि अर शस्त्रनिकरि व्यायाम करे है अभ्यास करे है। तहां तालवृक्षका पेड तथा केलीका पेड तथा वांसका पिंड इत्यादिकूं छेदे है
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भेदे है । बहुरि सचित्त चित्त द्रव्यनिका उपधात करें हैं। ऐसे नानाप्रकारके करणनिकर 57
5 उपघात करता तिस पुरुषकै निश्चयतें विचारों, साकै रजका बंध लगे है, सो कौनसे कारणाकरि
लगे है ? asi fae नरका जो तेल आदिका सचिक्कणभाव है, तिसकरि ताका बंध लगे है, यह
5 निश्चयतें जानना । बहुरि बाकी कायकी चेष्टा हैं, तिनिकरि सो रजका बंध नाहीं है, यह निश्चय है । ऐसे ही मिथ्यादृष्टि जीव बहुत प्रकारकी चेष्टाविषे वर्तमान है । सो अपना उपयोगविरागादिक भावनि करता संता कर्मरूप रजकरि लिये है, बंध करे है।
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टीका - इस लोक में निश्चयकरि जैसे कोई पुरुष स्नेह तेल आदिक, ताकरि अभ्यक्त कहिये
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मर्दनयुक्त भया संता, जामैं अपने स्वभावतें ही रज बहुत होय ऐसी भूमिविषै तिष्ठथा शस्त्रनिका क 15 व्यायाम कहिये अभ्यासरूप कार्यकूं करता संता अनेक प्रकारके कारणनिकरि सचित अचित्त वस्तूनिकं खापता संता, तिस भूमीको रजकरि बंधे है, लिपे हैं, ताकेँ विचारिये जो बंधका 5 कारण इनिमें कौन है ? तहां प्रथम तौ स्वभावही जामैं रज बहुत ऐसी भूमि सो रजके बंधने कारण नाहीं है । जो भूमि ही कारण होय तौ जिनिकै तैल आदिक नाहीं लम्बा अर 5 तिस भूमीविषै तिष्ठे तिनिकै भी तिस रजका बंध लग्या चाहिये, सो है नाहीं है । बहुरि शस्त्र - 5 निका अभ्यास करना कर्म है, सो भी तिस रजके बंध लगनेकूं कारण नाहीं है । जो शस्त्रकि
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अभ्यास बंधनेका कारण होय, तौ जिनिकै तैल आदि लग्या नाहीं, तिनिके भी तिस शस्त्राभ्यास फ
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करने रजका बंध लागे । बहुरि अनेक प्रकार करण ते भी तिस रजके बंधनेकूं कारण नाहीं