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अर्थ-ज्ञान है सो उदय होय है । कहा करता संता उदय होय है ? बंध है ताहि उडावता। ..... संता उदय होय है । कैसा है घंध ? रागका उद्गार जो उगलना उदय होना सो ही भया महा
'... रस, ताकरि समस्त जगतकू प्रमत्त-प्रमादी-मतवाला करिके अर रसके भावकरि भरथा जो ३६ । बडा नृत्य, ताकरि नाचता है, ऐसा बंधकू उडावता है । बहुरि आप ज्ञान कैसा है ? आनंदरूप卐 5 अमृतका नित्य भोजन करनेवाला है । वहुरि अपनी जाननक्रियारूप स्वाभाविक अवस्था ताकू...
प्रगटरूप नचावता संता उदय होय है । बहुरि धीर है, उदार है, निश्चल है, बड़ा जाका विस्तार 卐 है। बहुरि अनाकुल है-जामें किछु आकुलताका कारण नाहीं रहे है । बहुरि निरुपधि है-परि-- .. ग्रहते रहित है--किछू परद्रव्यसंबंधी ग्रहणत्याग नाहीं है । ऐसा ज्ञान उदयकू प्राप्त होय है। " का भावार्थ-बंधतत्त्व रंगभूमामें प्रवेश करे है, ताकू ज्ञान उडायकरि आप प्रगट होय नृत्य त करेगा, ताकी महिमा या काव्यमें प्रगट करी है । ऐसा ज्ञान अनंतस्वरूप आत्मा सदा प्रगट रहौ । आगे चतता सम विचारे हैं। जहां प्रथम बंधका कारण... प्रगट कहे हैं । गाथा
जह णाम कोवि पुरिसो णेहभत्तोदु रेणुबहुलम्मि। ठाणम्मि ठाइदृणय करेदि सत्येहि वायामं ॥१॥ छिंददि भिंददि य तहा तालीतलकदलिवंसपिंडीओ। सचित्ताचित्ताणं करेदि दव्वाणसुवघादं ॥२॥ उवघादं कुव्वंतस्स तस्स णाणाविहेहि करणेहिं । गिच्छयदो चिंतिजदु किं पञ्चयगोदु तस्स रयबंधो ॥३॥ जो सो दुणेहभावो तइमि गरे तेण तस्स रयवंधो। मिच्छयदो बिगोयं ण कायचेदठाहिं सेसाहिं ॥४॥
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