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.- शरीरविषय हैं, तेते उपभोगके निमित्त हैं । तहां जेते बंधके निमित्त हैं, तेते तो राग द्वेष मोह
आदिक हैं, बहुरि जेते उपभोगके निमित्त हैं, तेते सुखदुःखादिक हैं । अब कहे हैं, जो इनि सर्व- हीविर्षे ज्ञानीक राग नाहीं है । जाते अध्यवसान है सो नानाद्रव्यका स्वभाव है। तिसपणा
"करि तिस ज्ञानीके एक टंकोत्कीर्ण ज्ञायक स्वभावकै तिनिका प्रतिषेध है। 9 भावार्थ-संसारदेहभागसंबंधी राग द्वेष मोह सुखदुःखादिक अध्यवसानके उदय हैं, ते नाना.. द्रव्य जे पुद्गलद्रव्य तथा जीवद्रव्य ऐले संयोगरूप भये तिनिके स्वभाव हैं । अर ज्ञानीका एक भज्ञायकस्वभाव है, तातें ज्ञानोकै तिनिका प्रतिषेध है, तातें ज्ञानीकै सिनिवि राग प्रीति नाही है। 1- परद्रव्य परभाव संसारमैं भ्रमणके कारण हैं, तिनितें प्रीति करे, तो ज्ञानी काहेका ? इस "अर्थका कलशरूप तथा अगिले कथनकी सूचनिकाके श्लोक हैं।
स्वागताछन्दः ज्ञानिनो न हि परिग्रहमाचं कर्म सगरसरिक्ततयति
रागयुक्तिरकषायितवस्त्र स्वीकृतैव हि बहिर्ल्ड ठतीह ॥१६॥ " अर्थ-ज्ञानि तिनि परिग्रहभावनिकरि रिक्त है रहित है अर ज्ञानी रागरूपी रसकरि.भी रिक्त 卐है रहित है । तिसपणाकरि कर्म है सो परिग्रह भावकू नाही प्राप्त होय है। जैसे लोद फिटकडी ... करि कसायला न किया जो वस्त्र ताविर्षे रंगका लगना है, सो अंगीकार न भया संता बाद्य ही
लुठे है, वस्त्रमाहि प्रवेश नाही करे है।। ___ भावार्थ जैसे लोद फिटकडी लगाये विना वस्त्रके रंग चढे नाही, तैसे ज्ञानीके रागभावबिना कर्मका उदयका भोग नाही, सो परिग्रहपणाकू नाहीं प्राप्त होय है । फेरि कहे हैं
स्वागताछन्दः शानवान् स्वरसवोऽपि यतः स्यात्सर्वरागरसवर्जनशीलः। लिप्यते सकलकर्मभिरेष कर्ममध्यपवितोऽपि ततो न ॥१७॥
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