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उपग्रहक होय, सो सिद्धभक्तिमैं: उपयोग लगाया तब अन्य धर्मपरि दृष्टि ही न रही, तब सर्व ही फ्र
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छिपाये अर दूजा नाम उपगृहन का । सो अपना उपयोग सिद्धनिके स्वरूपमें लगाया तब अपना
आमाकी सर्व शक्ति बधाई, आत्मा पुष्ट भया सो दुर्बलताकरि बंध होय था, सो न होय है, तब 5 निर्जरा ही होय । बहुरि जेते अंतरायका उदय है, तेतें निचलाई है। परंतु याके अभिप्रायमें निबलाई नाही है । कर्मके उदयकूं जीतनेफा अपनी शक्तिसार महान् उद्यम होय है। आगे 卐 5 स्थितीकरण गुणकी गाथा है।-
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उम्मेगं गच्छंतं सिवमग्गे जो ठवेदि अप्पाणं ।
सोठिदिकरणेण जुदो सम्मादिट्ठी मुणेदव्व ॥ ४२ ॥
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उन्मार्ग गच्छंतं शिवमार्गे यः स्थापयत्यात्मानं ।
स स्थितिकरणेन युक्तः सम्यग्दृष्टिर्ज्ञातव्यः ॥ ४२ ॥
आत्मख्यातिः यतो हि सम्यग्दृष्टिः टंकोत्कीर्णेकज्ञायकस्वभावमवत्वेन मागे एवं स्थितिकरणात् स्थितिकारी तोऽस्य मार्गच्यवनकृतो नास्ति बंध: कि तु निर्जव ।
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5 अपना आत्मा सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रस्वरूप मोक्षका मार्ग, तातें छूटै तौ ताहूं तिस ही मार्गवि स्थापै, सो स्थितिकारी है । तातें मार्ग छूटनेकरि किया याकै बंध नाहीं होय । तौ होय है ? निर्जरा ही होय है ।
भावार्थ - जो अपना आत्मा अपने स्वरूपरूप मोक्षमार्गतें चिगै, ताकू तिस ही मार्गविष
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अर्थ- जो जीव अपने आत्माकूं भी उन्मार्ग चालतेकू मार्गविषै स्थापन करें, सो चेतयिता स्थितीकरणगुणयुक्त सम्यन्दष्टि जानना ।
टीका --जा सम्यष्टि है सो निश्चयकरि टंकोकी एक ज्ञायकस्वभावमय है, तातें जो फ
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