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स्थापे, सो स्थितीकरणगुणयुक्त है । ताकै मार्गत छूटनेकरि बंध होय सो घंध नाहीं होय । उदय आये कर्म रस देकरि खिरि जाय है, तातें निर्गरा ही है। आगे वात्सल्पगुणकी गाथा है
जो कुणदि वच्छलत्तं तिण्ह साधूण मोक्खमग्गम्मि। , सो वच्छलभावजुदो सम्मादिट्ठी मुणेदव्वो ॥४३॥
___ यः करोति वत्सलत्वं त्रयाणां साधूनां मोक्षमार्गे।
स वात्सल्यभावयुक्तः सम्यग्दृष्टितिव्यः ॥४॥ ___आत्मख्याति:-यतो हि सम्यग्दृष्टिष्टकोत्कीर्णे बजायकमावमयत्वेन सम्पदर्शनशानचारित्राणां स्वस्मादमेदबुद्ध्या सम्यग्दर्शनान्मार्गवत्सलः, ततोऽस्य मार्गानुपलंभवतो नास्ति बंधः किं तु निर्जरेव । ____ अर्थ-जो जीव तीन जे साधु कहिये सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र अथवा आचार्य उपाध्याय" साधुपदसहित आत्मा, तिनिका रूप जो मोक्षमार्ग, ताविर्षे वात्सल्यभाव करे सो वत्सलभावकरि ॥ युक्त सम्यग्दृष्टि जानना।
टीका-जात निश्चयकरि सम्यग्दृष्टि है सो टंकोत्कीर्ण एक ज्ञायकभावमयपणा करि सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रनिकू आपते अभेदबुद्धि करि भलै प्रकार देखनेते मोक्षमार्गका वत्सल है अति-.. प्रीतियुक्त है ताते याकै मार्गकी अप्राप्ति करि किया कर्मका बंध नाहीं है। तौं कहा है ? " निर्जरा है। ___ भावार्य-वत्सलपणा नाम प्रीतिभावका है, सो मोक्षमार्गरूप अपना स्वरूपविर्षे अनुरागयुक्त होय, ताकै मार्गकी अप्रोति करि किया कर्मका बंध नाही, कर्म रस देकर खिरि जाय है, तातें निर्जरा ही है । आगे प्रभावनागुणकी गाथा है
विजारहमारुढो मणोरहरएसु हणदि जो चेदा। सो जिणणाणपहावी सम्मादिट्ठी मुणेदव्यो ॥४४॥
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