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हैं। तहां यह ज्ञानी है सो न जानिये कर्म करे हैं कि नाहीं करे है, यह कौन जानें ? ज्ञानीकी ज्ञानीही जाने । अज्ञानीका ज्ञानीके परिणाम जानने व नाहीं, इहां ऐसा जानना, जो 卐 5 ज्ञानी कहने अविरत सम्यग्दृष्टी लगाय ऊपरके सर्व ही ज्ञानी हैं, तहां अविरतसम्यग्दृष्टि तथा देशविरत तथा आहारविहार करते मुनि तिनिके वाह्यक्रियाकर्म प्रवतें हैं, तौऊ अन्तरद्धमिध्यात्वके अभाव तथा ते यथासंभव कषाय अन उज्वल हैं। तनिक उजलाईकू तेही जाने हैं । मिथ्यादृष्टि afrat उजलाई जाने नाहीं । मिथ्यादृष्टि तौ बहिरात्मा है, बाह्यहोतें भला रामाने हैं । अन्तरात्माकी गति मिथ्यादृष्टि कहा जानैं ? आगे इस ही अर्थका समर्थनरूप कहे 5 5 हैं। जो ज्ञानीकै निःशंकित नामा गुण होय है, ताकी सूचनिकारूप काव्य कहे हैं ।
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अर्थ -- यह साहस केवल एक सम्यग्दृष्टि हैं तेही करनेकूं समर्थ हैं । जो भयकरि चलायमान 5 15 भया जो तीन लोकका जन, तिनने छोड्या है अपना मार्ग ज्याकरि ऐसा वज्रपात पडते संते भी अपने ज्ञान नाही चलायमान होय हैं। कैसे हैं सम्यग्दृष्टि ? स्वभाव ही करि निर्भयपणा सर्व 卐 5 ही शंका छोडि करि अपना आत्माकूं ऐसा जाने हैं जो नाहीं बाध्या जाय है ज्ञानरूप शरीर जोका, ऐसा आप ही करि जानते संते प्रवर्ते हैं ।
भावार्थ - सम्यग्दृष्टि निःशंकित गुण सहित होय है। सो ऐसा वज्रपात पडे, जो जाके भय करि तीन लोकके जन मार्ग छोडि दे तौऊ सम्यग्दृष्टि अपना स्वरूपकं निर्वाध ज्ञानशरीर मानता 5 ज्ञानते चलायमान न होय है। ऐसी शंका नाही ल्याये है, जो इस बज्रपाततें मेरा विनाश
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शादूलविक्रीडितच्छन्दः
सम्यग्दृष्टय एव साहसमिदं कर्तुं क्षमन्ते परं यऽपि पतत्यमी भवचलत्यैलोक्यमुक्ताध्वनि । सर्वामेव निसर्गनिर्भयतया शंकां विहाय स्वयं जानन्तः स्वमवध्योधनपुर्ण बोधाच्च्यवन्ते न हि ॥२२॥
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होयगा । पर्याय विनसे तौ याका विनाशीक स्वभाव ही है। आगे इस अर्थ गाथा करि कहे हैं ।
गाथा
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