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समय
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अर्थ-ज्ञानीके जो पूर्व बंधे अपने कर्मका विपाक कहिये उदयतें उपभोग होय है, सो होऊ ।
परंतु रामके वियोग निश्चयतें सो उपयोग परिग्रह भावकूं नाही प्राप्त होय है ।
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भावार्थ- पूर्वे बांधे कर्मका उदय आवै तब उपभोग सामग्री प्राप्त होय, ताकू अज्ञानमय
रागभाव कर भोगवे, तब तौ सो परिग्रह भावकूं प्राप्त होय सो ज्ञानीकै अज्ञानमय रागभाव
गया,
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5 नाहीं है । उदय आया है, ताकू भोगवे है। यह जाने है- जो पूर्वे बांध्या था सो उदय आय पिंड 'छूटया, आगामी नाहीं वांछू हौं, ऐसें तिनि रागरूप इच्छा नाहीं तब ते परिग्रह 5 भी नाहीं । आगे ज्ञानीकै तीनकालगत परिग्रह नाहीं है ऐसे कहे हैं। गाथा - उप्पराणोदय भोगे विओगबुद्धीय तस्स सो णिच्चं ।
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कंखामणागदस्स य उदयस्स ण कुव्वदे णाणी ॥ २३ ॥
उत्पन्नोदभोगे वियोगबुद्धया तस्य स नित्यं ।
कांक्षामनागतस्य चोदयस्य न करोति ज्ञानी ॥ २३॥
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आत्मख्यातिः — कर्मोदयोपभोगस्तावत् अतीतः प्रत्युत्पन्नो नागतो वा स्यात् । तत्र तीतस्तावत अतोदत्वादेव सन् परिगृहमावं विभर्ति | अनागतस्तु आकांक्ष्यमाण एव परिग्रहभावं विभृयात् । प्रत्युत्पन्नस्तु स किल रागबुद्ध्या प्रवर्तमान फ एव तथा स्यात् । न च प्रत्युत्पन्नः कर्मोदयोपभोगो ज्ञानिनो रागवुद्ध्या प्रवर्तमानो दृष्टः ज्ञानिनोऽज्ञानमयभावस्य रागबुद्ध ेरभावात् । वियोगबुद्ध्यैव केवलं प्रवर्तमानस्तु स किल न परिग्रहः स्यात् । ततः प्रत्युत्पन्नः कर्मोदयोपभोगो ज्ञानिनः परिग्रहो न भवेत् । अनागतस्तु स किल झानिनो न कांक्षित एव, ज्ञानिनोऽज्ञानमयभावस्याकांक्षाया अभानात् । ततो नागतोऽपि कर्मोदयोपभोगो ज्ञानिनः परिग्रहो न भवेत् ।
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अर्थ - उत्पन्न भया वर्तमानकालका उदयका भोग, सो तौ तिस ज्ञानीकै निरंतर वियोगकी बुद्धिकरितें है । तातें परिग्रह नाहीं है । बहुरि अनागत जो आगामी काल, तिलविष उदय 5 होयगा, ताकी ज्ञानी वांछा नाहीं करे है, तातें परिग्रह नाहीं है । बहुरि अतीतकालका वीति ही 5
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