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कारण अज्ञानकू छोडनेका है मन जाका, ऐसा जो यह ज्ञानी, सो तिस परिग्रह विशेषकरि कन्यारा न्यारा परिहार करने फेरि प्रवर्तें है ।
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भावार्थ - जातें स्वपरका एक है । तातें ज्ञान
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जानका कारण अज्ञान है, ताहीर्ते परद्रव्यका परिग्रहण गाथामैं तो परिग्रहका सामान्यकरि त्याग करना कया। अब आगे 5
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भावस्तु ज्ञानिनो न भवति, ज्ञानिनो ज्ञानमय एव भावोऽस्ति ततो ज्ञानी, अज्ञानमयस्य भावस्य इच्छाया अभावाद 5 धर्म नेच्छति । तेन ज्ञानिनो धर्मपfront area | ज्ञानमयस्यैकस्य aresatara भावाद् धर्मस्य केवलं शायक
अज्ञानके छोडनेकूं विशेषकर न्यारा न्यारा नाम लेकरि त्याग करना कया है । गाथा - अपरिग्गहो अणिच्छो भणिदो णाणीय णिच्छदे धम्मं ।
अपरिग्गहो दु धम्मस्स जाणगो तेण सो होदि ॥१८॥ अपरिग्रहोऽनिच्छो भणितो ज्ञानी च नेच्छति धर्मं । अपरिग्रहस्तु धर्मस्य ज्ञायकस्तेन स भवति ॥ १८॥
आत्मख्यातिः—इच्छा परिग्रहः तस्य परिग्रहो नास्ति यस्येच्छा नास्ति, इच्छा स्वज्ञानमयो भावः, अज्ञानमयी 5
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एवायं स्यात् ।
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अर्थ -- ज्ञानी है सो परिग्रह रहित है, जातें अनिच्छ कहिये परिग्रहकी इच्छा रहित है, ऐसा है । तातें धर्मं नाहीं इच्छे है । तातें धर्मका अपरिग्रह ही है, तिस धर्मका ज्ञानी ज्ञायक ही है ।
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टीका-इच्छा है सो परिग्रह है, जाकै इच्छा नाहीं ताकै परिग्रह नाहीं । बहुरि इच्छे है
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सो अज्ञानमय भाव है, अज्ञानमय भाव है सो ज्ञानोके नाहीं' है, ज्ञानीकें तो ज्ञानमय ही भाव है । तातें ज्ञानी है, सो अज्ञानमयभात्र जो इच्छा, ताके अभाव धर्मकूं नाहीं 5 इच्छे है । तिस कारण करि ज्ञानीकै धर्मपरिग्रह नाहीं है । ज्ञानमय जो एक ज्ञायकभात्र,
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