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. अर्ष-इच्छा रहित होय सो परिग्रहरहिल है ऐसे कया है । बहुरि ज्ञानी है सो अशन कहिये । ग्य भोजन, ताकू नाही इच्छे है । तातें ज्ञानीके अशनका परिग्रह नाहीं है । तिस कारगकरि ज्ञानी क.. १ अशनका ज्ञायक ही है। " टीका-इच्छा है सो परिग्रह है, सो जाके इच्छा नाहीं ताकै परिग्रह नाहीं । बहुरि इच्छा + है सो अज्ञानमय भाव है, सो ज्ञानीके अज्ञानमय भाव नाही है। जाते ज्ञानीकै तौ ज्ञानमय ही ..
भाव है, सातें ज्ञानी है सो अज्ञानमयभाव जो इच्छा, ताके अभावतें अशनकू नाही इच्छे है।। तिस कारणकरि ज्ञानीके अशनका परिग्रह नाही है। ज्ञानमय ही भाव है, तातें ज्ञानी है सो अज्ञानमय भाव जो इच्छा, ताके अभावतें अशनकू नाही इच्छे है । तिस कारणकरि ज्ञानीकै ।। अशनका परिग्रह नाहीं है । ज्ञानमय जो एक ज्ञायक भाव, ताके सदावतें यह ज्ञानी केवल ।
अशनका ज्ञायक ही है। 9 भावार्थ-ज्ञानीके आहारकी भी इच्छा नाहीं है, तातें ज्ञानीके आहार करना भी:परिग्रह ।।
नाही है । इहां प्रश्न-जो आहार तौ मुनी भी करें है, ताकै इच्छा है की नाही ? विना इच्छा"
आहार कैसे करे ? ताका समाधान-जो असातावेदनीय कर्मके उदयतें तो जठराग्निरूप खंधा 15 उपजे है अर वीर्या तरायके उदयकरि ताकी वेदना सही नाही जाय है अर चारित्रमोहके उदय
करि ग्रहणकी इच्छा उपजे है । सो इस इच्छाकू कर्मका उदयका कार्य जाने है, तिस इच्छाकू रोगवत् जानि मेटथा चाहे हैं । इच्छातें अनुरागरूप इच्छा नाही है, ऐसी इच्छा नाहीं है जो मेरी यह इच्छा सदा रहौ । तातें अज्ञानमय इच्छाका अभाव है। परजन्य इच्छाका स्वामीपणा ..
ज्ञानीके नाही है। तातें इच्छाका भी ज्ञानी ज्ञायक ही है । ऐसा शुद्धनय... प्रधानकरि कथन । + जानना । आगे पानका भी परिग्रह ज्ञानीक नाही ऐने कहे हैं। माया
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