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काशं स्वघुद्धिमधिरोप्याचाराधेयभावो विभाज्यते तदा शेषद्व्यांतराधिरोपनिरोधादेव बुद्धर्न भिन्नाधिकरणापेक्षा प्रभा वति । तदप्रभवे चैकमाकाशमेवैकस्मिन्नाकाश एच प्रतिष्ठितं विधायतो न पराधारधेयत्वं प्रतिभाति ततो बानमेव ज्ञाने
एवं क्रोधादय एव क्रोधादिष्वेवेति, साधु सिहं भेद विज्ञानं । ____अर्थ-उपयोगविर्षे उपयोग है। क्रोधादिकविर्षे निश्चयकरि कोऊ उपयोग नाहीं है। बहुरि ॥
क्रोधविही क्रोध है । उपयोगविर्षे निश्चयकरि क्रोध नाहीं है । बहुरि अष्टप्रकार ज्ञानावरण आदि कर्म अर शरीरादिक नोकर्म, ताविर्षे भी उपयोग नाहीं है। बहुरि उपयोगविर्षे कर्म नोकर्म भी नाहीं है । बहुरि सत्यार्थज्ञान जिसकाल जीवकै होय है, तिसकाल किछू भी उपयोगसिवाय अन्य भाव नाहीं करे है । केवल उपयोगस्वरूप शुद्ध आत्मा है। ____टीका--निश्चयकरि एक द्रव्यका दूसरा द्रव्य किछू संबंधी नाहीं है । जातें द्रव्य है सो भिन्न-5 + भिन्न प्रदेशरूप है । तातें एकसत्ताकी अप्राप्ति है । द्रव्यद्रव्यकी सत्ता न्यारी न्यारी है। वहरि ..
सत्ता एक न होते अन्य द्रव्यके अन्य द्रव्यकरि आधाराधेयसंबंध भी नाहीं है । तातें द्रव्यके अपने स्वरूपहीविर्षे प्रतिष्टारूप आधाराधेयसंबंध तिष्ठे है । तिसकारणकरि ज्ञान आधेय, लो तो जाणपणारूप अपना स्वरूप आधार, ताविर्षे प्रतिष्ठित है। जाते जाणपणा है सो ज्ञानतें अभिन्नभाव है-भिन्नप्रदेशरूप नाहीं है । तातें जाननक्रियारूप ज्ञान है सो ज्ञानही विर्षे है। बहुरि क्रोधादिक
हैं ते क्रोधरूप क्रिया क्रोधपणा अपना स्वरूप ताहीविर्षे प्रतिष्ठित हैं। जाते क्रोधपणारूप क्रिया प्र क्रोधादिकते अपृथग्भूत है, अभिन्नप्रदेश है । तातें क्रोधरूप क्रिया कोषादिविर्षेही होय है । बहुरि ॥ - क्रोधादिकविर्षे अथवा कर्म नोकर्मविर्षे ज्ञान नाहीं है । बहुरि ज्ञानविष क्रोधादिक अथवा कर्म नो...
कर्म नाहीं है। जातें ज्ञानके अर क्रोधादिकके अर कर्म नोकर्म के परस्पर स्वरूपका अत्यंत विपक प रीतपणा है। तिनिका स्वरूपका अत्यंत विपरीतपणा है । तिनिका स्वरूप एक होय नाही , ताते ।।
परमार्थका आधाराधेय संबंधका शून्यपणा है। बहुरि जैसे ज्ञानका जाननक्रियारूप जाणपणास्वरूप । म है, सेसे कोषकप क्रियापणास्वरूप नाहीं है। बहुरि जैसे क्रोधादिकका क्रोधपणा आरिक क्रिया