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- सुखदुःखकी वेदनाते रागादिक भावनिको अभावकरि आगामी बंधके निमित्त नाही होय करि न केवल निर्जरे ही है, सो निर्जरारूप भया संता निर्जरा ही कहिये, बंध न कहिये। प्र भावार्थ:-कर्मका उदय आये मुखदुःखभाव नियमकरि उपजे हैं। तिसकू वेदते संते मिथ्या
दृष्टीकै तौ रागादिकके निमित्तते आगामी बंधकरि निर्जरे है। तातें निर्जरे काहेकी ? बंध ही 卐 किया । बहुरि सम्यादृष्टीके तिस वेदनासू रागादिकभाव नाहीं हैं, तातै आगामी बंध न होय, 1 1- तब केवल निर्जरा ही भई । ऐसें भावरूप निर्जरा होय है। याका अर्थकी अगिले कथनकी सुचनिकारूप कलशरूप श्लोक है।
अनुष्ट्रपछन्दः तद् ज्ञानस्यैव सामर्थ्य विरागस्य च वा किल । यत्कोऽपि कर्मभिः कर्म भुन्जानोऽपि न प्रध्यते ॥२॥ ॥ ॥ अथ ज्ञानसामर्थ्य दशयति
अर्थ-जो कर्म• भोगवता संता भी कर्मकरि नाहीं बंधे है, सो यह कोई आश्चर्यरूप सामर्थ्य ॐ ज्ञानका ही है, अथवा विरागीका ही है । अज्ञानीकू तौ आश्चर्यका उपजावनहारा है। ज्ञानी .. 1- यथार्थ जाने है । आगे ज्ञानका सामर्थ्यकू दिखावे हैं । गाथा
जह विसमुवभुजंता विजापुरिसा ण मरणमुवयंति । पोग्गलकम्मस्सुदयं तह भुंजदि ग्रेव वज्झदे णाणी ३॥
यथा विषमुपभुजाना विद्यापुरुषा न मरणमुपयाति ।
पुद्गलकर्मण उदयं तथा मुके नैव बध्यते ज्ञानी ॥३॥ - आत्मरूपाति:----यथा कश्चिद्विषवैद्यः परेषां मरणकारणं विषमुषभुञ्जानोऽपि, अमोघविद्यासामध्येन निव
सच्छत्तित्वान्न म्रियते, तथा अन्नानिनां रागादिभावसमावेन बंधकारणं पुद्गलकर्मोदयमुपंजा नोऽपि अमोधक्षान+ सामर्थ्यात् रागादिभावानामभावे सति निरुतच्छक्तित्वात् न बध्यते बानी ।
__ अथ वैराग्यसामर्थ्य दर्शयति---
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