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5 पणा स्वरूप है, तेसे जाननक्रियारूप स्वरूप नाहीं है । कोई हो प्रकारकरि ज्ञानकुं क्रोधादिक्रियारूप परिणामस्वरूप स्थापया न जाए है । जाते जाननक्रियाके अर कोवरूप कियाके स्वभावका भेद्करि प्रगट प्रतिभासमानपणा है । बहुरि स्वभावके भेदतेंहि वस्तूका भेद हैं, यह नियम है। तातें ज्ञानकै अर अज्ञानस्वरूप क्रोधादिकके आधाराधेयभाव नाहीं है । फ्र
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sri reinsरि विशेष कहे हैं— जैसा आकाशद्रव्य एक ही है, ताहि अपने बुद्धिविषै स्थापि अर आधाराधेयभाव कल्पिये, तब आकाशसिवाय अन्य द्रव्य तिनिका तौ अधिकाररूप आरोपणाफ का निरोध भया । याहीतें बुद्धिकै भिन्न आधारकी अपेक्षा तौ न रही। अर जब भिन्न आधारको अपेक्षा नाहीं रही, तब बुद्धी मैं यह ही ठहरी, जो आकाश है सो एक ही है । सो एक आकाश5 हीविये प्रतिष्ठित है । आकाशका आधार अन्य द्रव्य नाहीं । आप आपहीकै आधार है। ऐसी भावना करनेवाले अन्यका अन्यके आधाराधेयभाव नाही प्रतिभासे है। ऐसे ही जब एक ही ज्ञानकूं अपनी बुद्धिविषै स्थापि आधाराधेयभाव कल्पिये, तब अवशेष अन्य द्रव्यनिका अधिरोप 15 करनेका निरोध भया । यातें बद्धीकै भिन्न आधारको अपेक्षा नाहीं रहे है । अर भिन्न आधारकी अपेक्षा हो बुद्धिमैं न रही, तब एक ज्ञानही एक ज्ञानविषै प्रतिष्ठित ठहरथा । ऐसी भावना करने 5 5 वालेके अन्यका अन्यके आधाराधेयभाव नाहीं प्रतिभासे है । तातें ज्ञान ही हैं सो तौ ज्ञान ही विष है । अर कोधादिक हैं ते क्रोधादिकवि ही है । ऐसें ज्ञानके अर कोधादिकके अर कर्म5 नोकर्म के भेदका ज्ञान है सो भलैप्रकार सिद्ध भया ।
भावार्थ - उपयोग है सो तौ चेतनाका परिणमन ज्ञानस्वरूप है। अर क्रोधादिक भावकर्म, ज्ञानावरणादि द्रव्यकर्म, शरीरादिक नोकर्म, यह सर्व ही पुद्गलद्रव्यके परिणाम हैं, ते जड हैं, 15 इनिके अर ज्ञानके प्रदेशभेद है, तातें अत्यंत भेद है । तातें उपयोग विषै तौ क्रोधादिक तथा कर्म नोकर्म नाही है । बहुरि कोधादिक कर्मनोकर्मविषे उपयोग नाही' है। ऐसे इनिके परमार्थस्वरूप क 5 आधार आधेयभाव नाहीं है । अपना अपना आधाराधेयभाव आप आपविषै है । ऐसे इनिके परस्पर
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