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भावयेद् भदविज्ञानमिदमच्छिमधारया । तावद्यावत्पराच्च्युत्वा शानं शाने प्रतिष्ठितं ॥६॥
अर्थ-यह भेद विज्ञान है ताहि निरन्तर धाराप्रवाहरूप जामें विच्छेद न पड़े ऐसे तेते भावे, -८ जेते ज्ञान है सो परभावनित छुटि करि अपने स्वरूपज्ञानही विचं प्रतिष्ठित होय ठहरी जाय ।।
भावार्थ इहां ज्ञानका ज्ञान विर्षे ठहरना दोय प्रकार जानना । एक तौ मिथ्यात्वका अभाव फ़ होय सम्यग्ज्ञान होय, फेरि मिथ्यास्त्र न आवै। बहुरि दूजा यह जो शुद्धोपयोगरूप होय ठहरे, .. ज्ञान अन्य विकाररूप न परिणमै । सो दोऊ प्रकार न बने तेते निरन्तर भेद विज्ञानको भावना है जा राखनी । फेरि बेद विज्ञानकी महिमा का है। भेदविज्ञानतः सिद्धाः सिद्धा ये किल केचन । तस्यैवाभावतो बड़ा बद्धा ये किल केचन ||
जाम ____ अर्थ-जे केई सिद्ध भये हैं, ते इस भेदविज्ञानतें भये हैं । बहुरि जे कर्मत बंधे हैं, ते तिसही 9 भेदविज्ञानके अभावतें बंधे हैं।
भावार्थ-संसार सो आत्मा अर कर्मके एकताकी माननेतें है, सो अनादितें जेतें भेदविज्ञान 卐 नाहीं है, तेतें कर्मतें बंधे ही है । तातें कर्मबंधका मूल भेदविज्ञानका अभाव ही है। जे बंधे हैं ते ।
याहीके अभावतें बंधे हैं । वहुरि जे सिद्ध भये हैं, ते भेदविज्ञान भये ही भये हैं । तातें प्रथम 9 भेदविज्ञान ही मोक्षका कारण है। यहां ऐसा भी जानना, जो विज्ञानाद्वैतवादी वौद्ध तथा वेदांती ॥
वस्तू• अद्वैत कहे हैं, ते अद्वैतका अनुभवही सिद्धि कहे हैं, तिनिका भी इस भेदविज्ञान सिद्धि के " कहनेते निषेध भया । जातें सर्वथा अद्वैत वस्तुका स्वरूप नाही, अर जे माने हैं, तिनिका भेद+ विज्ञान कहना बने नाहीं । भेदविज्ञान तौ वस्तु द्वैत होय तब कहना बने । सो जीव अजीव दोय ॥
वस्तु माने, अर दोयका संयोग माने, तब भेदविज्ञान बने, यात स्वाद्वादनिकै सर्व निर्बाध सिद्धि 卐 होय है । आगै संवरका अधिकार पूर्ण भया, सो या संवरका भये ज्ञान कैसा है ऐसे ज्ञानकी म
महिमाका कलशरूप काव्य कहे हैं।
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