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। परिणीतस्त्रीवत् उपभोग्यप्रायोग्य पुद्गलकर्मद्रव्यप्रत्ययाः संतोऽपि कर्मोदयकार्यजीवभावसभावादेव वनति । ततो॥ _+ शानिनो यदि द्रव्यप्रत्ययाः पूर्वबद्धाः संति । गंह । तथापि न निराशन एव कर्मोहयकार्यस्य रागद्वेषमोहरूपस्या- 1.
सबभावस्याभावे द्रव्यप्रत्ययानामगंधहेतुत्वात् । ____ अर्थ-सम्यग्दृष्टिके सर्व ही पूर्वे अज्ञान अवस्थामैं बांधे मिथ्यात्वादि प्रत्यय कहिये आसूत्र ते सत्तारूप विद्यमान हैं, ते उपयोगके प्रायोग्य कहिये प्रयोग करनेरूप जैसे होय तैसे तिसके अनु...
सार कर्मभावकरि आगामी बंधकू योग करनेरूप जैसे होय तैसे तिसके अनुसार कर्मभाव करि + आगामी बंधकू प्राप्त होय हैं । बहुरि ते पूर्व बंधे प्रत्यय उदय आये विनो निरुपभोग्य कहिये भोगने ,
योग्यपणाते रहित होयकरि तिष्ठे हैं, ते फेरि आगामी तैसे बंधे हैं-जैसे सात आठ प्रकार ज्ञानावरणादिभावकरि फेरि भोगने योग्य होय । बहुरि ते पूर्व बंधे प्रत्यय सत्तामें ऐसे हैं जैसे पुरुषके बालस्त्री भोगने योग्य नाहीं है बहुरि ते ही उपभोग्य कहिये भोगनेयोग्य होय तब पुरु-.. पकू बांधे है । जैले सा ही वाला स्त्री तरुणी होय तव पुरुबकू बांधे है । पुरुष ताके आधीन होय यह ही बंधना। इस कारणकरि सम्यग्दृष्टि अबंधक कह्या है । जातें आस्वभाव जे राग द्वेष मोह .. तिनिका अभाव होते प्रत्यय लिथ्यात्वादिक हैं, ते सत्तामें छते भी आगामी कर्मबंधके करनेवाले ।
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+ नाहीं हैं।
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टीका-जातें ऐसे हैं जो जैसे तत्कालकी परिणी बालस्त्री पहले वालक अवस्थामै पुरुषके। 卐 भोगनेयोन्य नाहीं है, फेरि सो ही स्त्री जब तरुणी होय तब जौवन अवस्थामैं भोगनेयोग्य होय,
है, तब पुरुष ताके आधीन होय है । तैसे पहले बांधे कर्म सत्ता अवस्थामैं है तेते भोगनेयोग्य ॐ नाही हैं । बहुरि ते ही जब विपाक अवस्था प्राप्त होय, तब तिस उदय अवस्थामें भोगनेयोग्य 5
होय है, तब जैसा आत्माका उपयोग विकारसहित होय तिस ही योग्यताके अनुसार पुद्गलकर्मरूप ... द्रव्य प्रत्ययसत्तारूप होते संते भी कर्मका उदयानुसार जीवके भावनिक सद्भावहीत बंधळू। प्रात होय है । तातें ज्ञानीके जो द्रव्यकर्मरूप प्रत्यय आस्वसत्तामैं विद्यमान हैं तो होऊ, तथापि
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