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________________ २ 卐 卐 निवास में आय मिलें । तैसें आत्मा भी अनेक विकल्पनिके मार्गकरि स्वभावतें च्युत भया भूमण करता संता कोई विवेक भेदज्ञानरूप नीचा मार्गकरि आप ही आपकूं खेचता संता, अपने स्वभाव प्रा विज्ञानघन वर्षे आय मिले है । अब कर्ता कर्म अधिकारकूं पूर्ण किया है, सो कर्ता कर्मका संक्षेप अर्थके कलशरूप श्लोक कहे हैं। फफफफफफफफफफफफफ अनुष्ट छन्दः 卐 विकल्पकः परं कर्ता विकल्पः कर्म केल। न तु कर्तृ कर्मत्वं सविकल्पस्य नश्यति ||४०|| 卐 卐 अर्थ - विकल्प करनेवाला तौ केवल कर्त्ता है । बहुरि विकल्प है सो केवल कर्म है। अन्य किछू फ कर्ता कर्म नाहीं है । यातें जो विकल्पसहित है, ताका कर्ता कर्मपणा कदाचित् भी नष्ट नाहीं हो है । 卐 भावार्थ- जहां तांई विकल्पभाव है, तहां तांई कर्ताकर्मभाव है। जिस काल विकल्पका 卐 अभाव होय, तिस काल कर्ताकर्मभावका भी अभाव होय है । अब कहे हैं, जो करे है सो करे ही है, जाने है सो जाने ही है। 卐 卐 5 जो करे, हैं, सो कछू ही नाहीं जाने है । अर जो जाने है, सो कछू ही नाहीं करे है । भावार्थ-कर्ता है सो ज्ञाता नाहीं, अर ज्ञाता है सो कर्ता नाहीं । अब कहे हैं, ऐसे ही करने रूप क्रिपा अर जाननेरूप क्रिया दोऊ भिन्न हैं । 卐 卐 卐 卐 फफफफफफफफफफफफ रथोद्धताछन्दः यः करोति स करोति केवलं यस्तु वेति स तु वेति केवलम् । यः करोति न हि वेति स क्वचित् यस्तु वेत्ति न करोति स क्वचित् ॥ ५१॥ अर्थ- जो करे है, सो केवल करे ही है। बहुरि जो जाने है, सो केवल जाने ही है । बहुरि इन्दवज्रा छन्दः इप्तिः करोतौ न हि भासतेऽन्तः ज्ञशौ करोतिश्च न भासतेऽन्तः । शतिः करोतिश्च तो विभिन्ने ज्ञाता न कर्तेति ततः स्थितं च ॥ ५२ ॥ २४
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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