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अथ आस्रवाधिकारः। दोहा--द्रव्यास्रवतें भिन्न है भावात्रव करि नास । भये सिद्ध परमात्मा नमू तिनहि सुखआस॥१॥
आत्मख्यातिः-अथ प्रविशत्यासवः । ___ अब इहां आस्रव प्रवेश करे है । जैसे नृत्यके अखाडेमैं नाचनेवाला स्वांग करी प्रवेश करे, पतैसें इहां आस्रवका स्वांग है। तहां इस स्वांग• यथार्थ जाननेवाला सम्यग्ज्ञान है । ताकी महि"मारूप मंगल करे है।
द्रुतविलम्बितच्छन्दः अथ महामदनिर्मरमन्थरं समररङ्गपरागतमास्रवम् ।
अयमुदारसमीरमहोदयो जयति दुर्जयनोधधनुर्धरः ॥१॥ ___ अर्थ-अथशब्द तो मंगल तथा प्रारंभवाची है । सो इहांतें आगे कहे है। जो काहूकार जीत्या न जाय ऐसा यह अनुभवगोचरज्ञानरूप सुभट धनुषधारी है, सो आस्रव है ताही जीते है। कैसा है ज्ञानरूप मुभट ? उदार कहिये अमर्यादरूप फैलता अर गंभीर कहिये जाका छद्मस्थ "थाह न पावे ऐसा है महान् उदय जाका । वहरि आस्रव कैसा है ? महान् जो मद ताकार ॐ अतिशयकरि भरया मंथर है उन्मत्त है । बहुरि कैसा है ? समररंग कहिये संग्रामभूमि ताविर्षे ॥ · आया है। 卐 भावार्थ-इहां नृत्यके अखाड़ेमें आसव प्रवेश किया, सो नृत्यमें अनेकरस वर्णन होय है, 卐 .. तातें रसवत् अलंकारकरि शांतरसमैं वीररस प्रधानकरि वर्णन कीया है। जो ज्ञानरूप धनुष्य- ..
धारी आसूवकू जीते है, सो आसब सर्वजगतकू जीति मदोन्मस भया संग्रामकी रंगभूमिमें आया 1- खडा रया, तब ज्ञान यासू भी बलवान् सुभट है, सो तत्काल जोते है, अंतमुहूर्तमें कर्मका नाश "करि केवलज्ञान उपजावे है । ऐसा ज्ञानका सामर्थ्य है। आगे आलवका स्वरूपकू कहे हैं। गाथा- "
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