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म अर्थ-भो मुनिजन हो, पूर्वोक्त शुभ अशुभ कर्म हैं ते कुशील हैं, निंद्य स्वभाव हैं। ताते ... सिमि वोऊ शीलनि राग श्रीति मति करो अथवा तिनिका संसर्ग भी मति करो। जाते । ॐ कुशीलके संसर्गत अर रागते अपना स्वाधीनका ही विनाश है, आपका घात आप हीतें होय है। जमा
टीका-कुशील जे शुभ अशुभ कर्म तिनि करि सहित राग अर संसर्ग दोऊ प्रतिषेधे हैं।" जाते ये दोऊ ही कर्मबंधके कारण हैं । जैसे कुशील जो मनको रमाक्नेवाली अर मनको नाहीं ॥ + रभावनेवाली हथनीरूपी कुटनी, ताका राग अर संसर्ग करनेवाला हस्तीका स्वाधीन विनाश होय . है, तेसैं स्वाधीन विनाश है। आगे दोऊ कर्मका प्रतिषेध• आप दृष्टांत करि हद करे हैं। गाथा
जहणाम कोवि पुरिसो कुच्छियसीलं जणं वियाणित्ता। वजेदि तेण समयं संसग्गं रायकरणं च ॥४॥ एमेव कम्मयपडी सीलसहावं हि कुच्छिदं णादु । वज्ति परिहरंति य ते संसग्गं सहावरदा ॥५॥
यथा नाम कश्चित्पुरुषः कुत्सितशीलं जणं विज्ञाय । वर्जयति तेन समकं संसर्ग रागकरणं च ॥४॥ एवमेव कर्मप्रकृतिशीलस्वभावं च कुत्सितं ज्ञात्वा ।
वर्जयंति परिहरति च तत्संसर्ग स्वभावरताः ॥५॥ मात्मख्याति:-पथा खलु कुशलः कश्चिद्धनहस्ती स्वस्य संधाय उपसर्पन्तीं चटुलमुखीं मनोरमाममनोरमां वा करे॥ + णुकुहिनी तस्वतः कुत्सितशीला विज्ञाय त्या सह रागसंसगौ प्रतिरोधयति । तथा किलात्मा रागो शानी स्वस्य बंधाय
उपसर्पती मनोरमाममनोरमां वा सर्वामपि कर्मप्रकृति तस्वतः कुत्सितशीला विचाय तया सह रागसंसमौ प्रतिषेधपति। " म अयोमयकर्महेतु प्रतिध्यं चागमेन साधयति
अर्थ-जैसे कोई पुरुष कुत्सित कहिये निंदनेयोग्य बुरा जाका स्वभाव ऐसा काई लोक
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