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आत्मख्यातिः -- मोक्षहेतुः किल सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रं । तत्र सम्यक्दर्शनं तु जीवादिश्रद्धानस्वभावेन ज्ञानस्य
卐 भवनं । जीवादिज्ञानस्वभावेन ज्ञानस्य भवनं ज्ञानं । रागादिपरिहरणस्वभावेन ज्ञानस्य भवनमापातं । ततो ज्ञानमेव फ्र
15 परमार्थमोक्षहेतुः ।
अथपरमार्थ मोक्षतोतुरन्यत् कर्म प्रतिषेधयति -
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अर्थ -- जीवादिक पदार्थको सम्यक् है ! बहुरि तिनि जीवादिपदार्थन
का अधिगम, सो ज्ञान है । बहुरि रागादिकका परिहरण त्याग सो चारित्र है । यह मोक्षका 5 मार्ग है ।
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टीका - मोक्षके कारण प्रगटपणे सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्र है। तहां जीवादि पदार्थनिका 5 सम्यग्दर्शन कहिये सम्यक्प्रकार यथार्थप्रधान, तिस श्रद्धानस्वभावकरि ज्ञानका भवन कहिये 5 होना परिणमना सो तौ सम्यग्दर्शन है । बहुरि तैसे जीवादिपदार्थनिका ज्ञान, तिस स्वभाव करि 5 ज्ञानका होना सो सम्यग्ज्ञान है । बहुरि रागादिकका परिहरण कहिये त्यागना, तिस स्वभावकरि ज्ञानका होना सो सम्यक्चारित्र है सो ऐसे सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्र ए तीनू ही ज्ञानके परिणमन मैं आय गये । तातें ज्ञान ही परमार्थरूप मोक्षका कारण भया ।
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भावार्थ - आत्माका असाधारण स्वरूप ज्ञान ही हैं । अर इस प्रकरण में ज्ञानहीकू' प्रधान
करि व्याख्यान है । तातें सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्र ए तीनू ज्ञानहीका परिणमन हैं, ऐसे कहि ज्ञान - 145
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मोक्षका कारण का है। ज्ञान है सो अभेदविवक्षोंमें आत्मा ही है। सो कहने में किछू
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विरोध नाहीं । आगे, परमार्थरूप मोक्षका कारणतें अन्य जो कर्म, ताकूं प्रतिषेधे हैं। गाथामोत्तण णिच्छयटुं ववहारे ण विदुसा पवट्ठेति ।
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परममस्सिदा तु जदीण कम्मक्खओ होदि ॥ १२ ॥ Hear franti व्यवहारे न विद्वांसः प्रवर्तते । परमार्थमाश्रितानां तु यतीनां कर्मक्षयो भवति ॥ १२ ॥
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