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समय
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आत्मख्यातिः–युः खलु परमार्थमतोरतिरिक्तो व्रततपः प्रभुतिशुभकर्मा केषांचिन्मोक्षहेतुः सर्वाऽपि प्रतिषिद्ध
स्तस्य द्रव्यान्तरस्यभावत्वात् तत्स्वभावेन ज्ञानभवनस्याभवनात् । परमार्थमोक्षहेतोरेचैकद्रव्यस्वभावत्वात् तत्स्वभावेन
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ज्ञानभवनस्य भवनात् ।
卐 अर्थ - निश्चयनयका विषयकूं छोडिकरि पंडित जन व्यवहारकरि प्रवर्ते हैं, परंतु ये यतीश्वर
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परमार्थभूत आत्मस्वरूपकं आश्रित हैं, तिनिके कर्मका नाश का है। व्यवहारही में प्रवर्तने
5 वालेका कर्मक्षय नाहीं होय है
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टीका - केईक निकै ऐसा मोक्षका हेतु कारण है, जो परमार्थभूत मोक्षका कारण, तातें तौ
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रहित अर व्रत तप आदिक शुभकर्मस्वरूपहीतैं मोक्ष है। सो ऐसा मोक्षका हेतु मानना सर्व ही 5 प्रतिषेध्या है । जातें ऐसे मोक्षके कारणके अन्यद्रव्यका स्वभावपणा है, तिस स्वभावकरि ज्ञानके परिणमनके न होना है। ज्ञानका परिणमन परमार्थतें शुभाशुभरूप नाहीं । परमार्थभूत जो मोक्ष 5 का कारण, ताहीके rearer arar है । तिस स्वभावकरिही ज्ञानके परिणमनका 5
होना है।
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-मोक्ष आत्मा होय है, सो ताका कारण भी आत्माका स्वभाव ही चाहिये, जो
5 अन्यद्रव्यका स्वभाव होय ताकरि आत्माकै मोक्ष कैसे होय ? यह निश्चयनयका मत है। यातें शुभकर्म पुद्गलद्रव्यका स्वभाव है, सो आत्माकै मोक्षका कारण नाहीं । ज्ञान आत्माका स्वभाव 5 हैं, सो ही आत्माकै परमार्थभूत मोक्षका कारण है । अब इस ही अर्थ के कलशरूप दोय श्लोक 155
कहे हैं।
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अनुष्टुप् छन्दः
बु ज्ञानस्वभावेन ज्ञानस्य भवनं सदा एकद्रव्यस्वभावत्वान्मोक्षहेतुस्तदेव तत् ॥ ७ ॥ इथं कर्मस्वभावेन ज्ञानस्य भवनं न हि द्रव्यांतरस्वभावत्वान्मोक्षहेतुनं कर्म तत् ॥ ८ ॥
अर्थ - जो ज्ञानस्वभावकरि वर्तना ज्ञानका होना है, सो ही मोक्षका कारण है । जाते ज्ञानके