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एक आत्मद्रव्यका स्वभावपणा है । बहुरि जो कर्मस्वभावकरि वर्तना है, सो ज्ञानका होना नाहीं, तो कर वर्तन पक्षका कारण नाही । जातें कर्मके अन्यद्रव्यका स्वभावपणा है 1
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भावार्थ- मोक्ष आत्मा होय है, सो आत्माका स्वभाव ही मोक्षका कारण होय, तातें ज्ञान -5 आत्माका स्वभाव है, सो ही मोक्षका कारण है। बहुरि कर्म है सो अन्यद्रव्य जो पुद्गलजन्य arat स्वभाव है, सो आत्माकै मोक्षका कारण नाहीं होय है, यह निश्चय है आगे अमिली 5 कनकी सूचनिकाका श्लोक कहे हैं।
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अनुष्टुप्छन्दः
मोक्षहेतुतिरोधाना धत्त्वात्स्वयमेव च मोक्षहेतु तिरोधायि भावत्वात्ताभिषिध्यते ॥ ६ ॥
जथ कर्मणो मोक्षहेतुतिरोधानकरणं साधयति
अर्थ---कर्म है सो मोक्षके कारणका तिरोधान है --आच्छादन करने वाला है । अर आप स्वयस्वरूप है। बहुरि मोक्षका कारणका तिरोभावपणा या है । ऐसें तीन
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कर्म निषेधये हैं । सो ही अर्थ आगे गाथाकरि साधे हैं। तहां प्रथम ही कर्मके मोक्षका कारण
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जो दर्शन ज्ञान चारित्र तिनिका तिरोधान करना आच्छादना ताकूं साधे हैं। गाथा
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वत्थस्स सेदभावो जह णासेदि मलविमेलणाच्छण्णो । मिच्छत्तमलोच्छण्णं तह सम्मत्तं खु गादव्वं ॥ १३ ॥ वत्थस्स सेदभावो जह वासेदि मलविमेलणाच्छगयो । अण्णाणमलोच्छण्णं तह गाणं होदि यादव्वं ॥ १४ ॥ वत्थस्स सेदभावो जह णासेदि मलविमेलणाच्छरणो । तह दु कसायाच्छयां चारितं होदि गादव्वं ॥ १५॥
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