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परमम्मिय अठिदो जो कुणदि तवं वदं च धारयदि। तं सब्बं वालतवं वालबदं विति सव्वहणु।। ८॥
卐प्राभूत परमा पास्थितः करोति तणे प्रतं च धारयति ।
तस्तव पालतपो बालबतं विदंति सर्वज्ञाः ॥८॥ बात्मल्यातिः-शानमेव मोक्षस्य कारणं विहित परमार्थभूतज्ञानशून्यस्याज्ञानकतयो ततपः कर्मणोः बंधहेतुत्वा卐 द्वालव्यपदेशेन प्रतिषिद्धत्वे सति तस्यैव मोक्षहेतुत्वात् ।
__अथ ज्ञानाबानमोक्षबंधहेतू नियमयति" अर्थ-जो परमार्थभूत ज्ञानस्वरूप आत्माविर्षे तौ नाहीं तिष्ठया है अर तप करे है बहुरि
व्रतकू धारे है सो सर्व ही तप बता सर्वज्ञदेव हैं ते बालतप कहिये अज्ञानतप अर बालबत कहिये " अज्ञानव्रत जाने हैं कहे हैं। 卐 टीका-मोक्षका कारण ज्ञान ही है यह विधि है । जाते परमार्थभूत जो ज्ञान ताकरि शून्य - ___ कहिये रहित जो अज्ञानतें किये तप अर व्रतरूप कर्म, तिनि दोऊनिकै बंधका कारणपणा है। तातें ॐ बालतप बालवत ऐसा नाम कहकरि सर्वज्ञदेवने प्रतिषेधे है । तातें तिस पूर्वोक्त ज्ञान हीकै मोक्षका ' 1- कारणपणा है।
भावार्थ-ज्ञानविना तप व्रत करना है, सो बालतप बालवत कह्याः है। तातें मोक्षका कारण म + ज्ञान ही है। आगें ज्ञान है सो तो मोक्षका हेतु है अर अज्ञान है सो बंधका हेतु है, ऐसा नियमकरि कहे हैं । गाथा--
वदणियमाणिधरंता सीलाणि तहा तवं च कुव्वंता। परमवाहिरा जेण तेण ते होति अण्णाणी ॥९॥
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