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बहुरि शुभ अर अशुभ जे पुद्गल के परिणाम, तिनिमय होते सते, स्वभावके भेवतें भेद है । बहुरि.. कर्मका फल जो शुभ र अशुभ, तिसका पाक जो रस, तिसफ्णाकू होते, अनुभव कहिये स्वादका भेदतें भेद है। वहरि शुभ अर अशुभ जो मोहका अर बंधका मार्ग, ताक आश्रितपणा होते,.. आश्रयका भेदतें भेद है। ऐसे इनि चार हेतूनित किछु कोई कर्म शुभ है, कोई कर्म अशुभ है। ऐसा कोईका पक्ष है, सो सप्रतिपक्ष है-याका निषेध करनेवाला दूसरा पक्ष है सो ही कहे है। जो शुभ अथवा अशुभ जीवका परिणाम है, सो केवल अज्ञानमयपणाते एक ही है, ताकू एक होते कारणका अभेद है, तात कारणका अभेदसे कर्म एक ही है। बहुरि शुभ अथवा अशुभ पुद्गलका परिणाम है सो केवल पुद्गलमय है । तातें एक ही है। ताके एक होते स्वभावका अभेदतें भी कर्म एक ही है। बहुरि शुभ अथवा अशुभ जो कर्मका फलका रस, सो केवल पुद्गलमय ही है। ताके एक हाते अनुभव कहिये आस्वादके अभेदतें भी कर्म एक ही है।... बहुरि शुभ अथवा अशुभ मोक्षका अर बंधका मार्ग ए दोऊ न्यारे हैं। केवल जीवमय तौक मोक्षका मार्ग है अर केवल बुद्गलमय बंधका मार्ग है, ते अनेक हैं एक नाहीं हैं। तिनिकू एक .. न होते भी केवल पुद्गलमय जो बंधमार्ग ताका आश्रितपणाकरि आश्रयका अभेदतें कर्म
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भावार्थ-कर्मके विर्षे शुभ अशुभका भेदकी पक्ष चार हेतुतें कही। तहां शुभका हेतु तो जीवका शुभपरिणाम है, सो अरहंतादिविर्षे भक्तोका अनुराग, बहुरि जीवनिविर्षे अनुकंपापरि-5 णाम, बहुरि मंदकषायतें चित्तकी उज्ज्वलता इत्यादि हैं । बहुरि अशुभकू जीवके अशुभपरिणाम - तीव्र क्रोधादिक अशुभलेश्या, निर्दयपणा, विषयासक्तपणा, देवगुरु आदि पूज्यपुरुषनित विनयरूप। न प्रवर्तना इत्यादिक हैं । तातें इनि हेतृनिके भेदतें कर्म शुभाशुभरूप दोय प्रकार है। बहुरि शुभ अशुभ पुद्गलके परिणामका भेदते स्वभावका भेद है । शुभ तौ द्रव्यकर्म तो सातावेदनीय शुभ आयु शुभनाम शुभगोत्र ए हैं। अर अशुभ चारी घातिया अर असातावेदनीय, अशूभ