________________
या
-
॥
॥
॥
卐 मलिन जाणपणाकी स्वच्छताते रहित उपयोग है सो कपायका उदय है। बहुरि जो जीवनिके
शुभरूप तथा अशुभरूप मनवचनकायकी चेष्टाका उत्साह करने योग्य तथा न करने योग्यका प्राय
व्यापार है ताकू योगका उदय जानू । इनिकू हेतुभूत होतें जो कार्मणवर्गणारूप आय प्राप्त 4 भया अष्ट प्रकार ज्ञानावरणादि भावनिकरि परिणमे है सो निश्चयतें जिस काल कार्मणवर्गणा ।
रूप आया संता जीववि निबद्ध होय है, तिस काल तिनि अज्ञानादिक परिणामभावनिका कारण - जीव होय है। ____टीका-अतत्त्व कहिये अयथार्थ वस्तुस्वरूपकी उपलब्धि करि ज्ञानविर्षे स्वादमें आवै सो + अज्ञानका उदय है । मिथ्यात्व, असंयम, कषाय, योगादिक तिस अज्ञानमय चार भाव हैं। कैसे 1- हैं ते ? ज्ञनावरणादि कर्मके कारण हैं । तहां तत्त्वके अश्रद्धानरूप करि ज्ञानमें आस्वाद आवे,'
सो तो मिथ्यात्वका, उदय है। बहुरि अविरमण कहिये अत्यागभाव करि ज्ञानविर्षे आस्वादरूप आवे है, सो असंयमका उदय है । बहुरि कलुष कहिये मलिन उपयोगरूपकरि ज्ञानविर्षे आस्वाद
रूप आवे है, सो कषायका उदय है । बहुरि शुभाशुभ प्रवृत्तिनिवृत्तिरूप व्यापाररू पकरि ज्ञानविर्षे 卐 स्वादस्वरूप होय है सो योगका उदय है । ए मिथ्यात्व आदिका उदयस्वरूप चारों भाव पुद्गलके
हैं ते आगामी कर्मबंधकू कारण होय हैं। तिनिकू कारणरूप होतें जो पुदगलद्रव्य कर्मवर्गणारूप
आया हुवा ज्ञानावरण आदि भावनिकरि अष्टप्रकार स्वयमेव परिणमे है । सो यह ज्ञानावरणा.. दिकरूप कर्मवर्गणाकरि प्राप्त भया जब जीववि निवद्ध होय, तब जीव है सो स्वयमेव अपने ॐ अज्ञानभावत परका अर आत्माका एकपणा निश्चयकरि अज्ञानमय जे अतत्त्वश्रद्धानादिक अपने + परिणामस्वरूप भाव, तिनिका कारण होय है।
म - भावार्थ-अज्ञानभावके भेदरूप जे मिथ्यात्व, अविरत, कषाय,योगरूप परिणाम ते पुद्गलके । 卐 परिणाम हैं । ते ज्ञानावरणादि आगामी कर्म बंधनेकू कारण हैं । अर जीव तिनि मिथ्यात्वादि । .. भावनिका उदय होते अपने अनभावतें अतत्त्वश्रद्धानादि भावनिरूप परिणमे है। तिनि अपने घर
$ 55 55 5 5 5 55 5
ऊमऊ ॥ ॐ